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________________ [ ५९ ] जावो सूर्य-चंद्र क्षीरो दैधि जललायो-।। ३॥ रचि असंख्यात, पैड़ा, विख्यात, सब एक साथ, पुल्कंत, गात हाथों हाथ कलश लाये लीजै स्वामी न्हावो॥ ४॥ फरि भुज हज़ार, पढ़ि मंत्रसार, सब कलश ढार, दिये एक ही वार-पड़ी धारा धध धध भई अज्ञालो लगावो ॥ ५॥ या जिन प्रसंग, भई जैन रांग, प्रगटी अभंग, उछटी तरंग लई सुर न अंग-सोई गङ्गा नित ध्यावो ॥६॥ यह अति विचित्र, गङ्गा है मित्र सुनि चरित्र चित्त हो पवित्र, जित तित न भ्रम हग सुख नहिं पायो ।॥ ७॥ १२६ गगनी जंगला। . ले गये अवधिपुर प्रभुजी को सुर जय जय उन्नारै । लेगये अ०। अजि जै जै उच्चारै अघजार भरि अंजुलि अरघ उता । वजत तात तुम, तननननन; सब इंद्र चवर ढारें । लगये॥टेक॥ एजी धूधूफिट, धूधूकिट बजत मजीरा धुन झाझाड़ा, झाझाड़ा कदै, सारंगी सितार पुन छम छम छमक पखावज़, मृदंग बाजे, भेरी बीणा बांसरी, तबल ढोल गाजै, गावें लेले चकफेरी नाचे नभ में सुरी, छम छननन् नल, इतनी जितने तारे ॥१॥ कोई कहै नंदोबृद्धो, जीवो एजिनंद्रचंद्र, कोई कहै जीवो राजा, नाभि नगरी को इंद्र, कोई कहै भ्राता जग, त्राताका ए जीवो माता, जायो जिन मुकतो को, दाता सोवै साता पाय, सेजपै मगन, सन सन नननन इन हमकं निस्तारे ॥२॥ ऐसी विधि फरत उछाव गीत गावन तव, घेर लियो जगल ज़मीन असमान सव, जल थल वन घन घाट बाट कंजरोक, पूजै राम मंदिर बजाये शंख ठोक ठोक, लाये धाये झोकि के
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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