________________
[२६] व्याधि कटै ॥ १ ॥ और ठौर मोहि विफलप उपजै हां आ आनन्द उटै ॥२॥ निज पर भेद विज्ञान प्रकाशै विपयन की मेरी चाह घटे ॥ ३॥ बानी सुन नैनानद उपजै मोह तिमर का दोष हटै॥४॥
५३-रागनी खम्माच की ठुमरी मल्हार |
जिया तृने तजो धरम हितकारी । ऐसा जग जन तारक, कलमलहारक, अधम उधारक रतनसार, तेन तजा धरम हितकाग ।। टेक॥ तेरे कर्म बंध तोर डारे, तीनों दुक्खत उवारैभवतें निकार अबहारी ॥१॥ नरक निकार लेय, तीर्थराज पद देय, धमिलो न कोऊ उपगारी ॥२॥ नैनसुख धर्मसेवी, मातमस्वरूप वेवो लागे पार खेवो तत्कारी ॥३॥
५४-धनसारी।
जिनवानी रस पी हे जियरा जिनवानी रसपी॥टेक॥ तुम हो अजर अमर जगनायक ज्ञानसुधा सरसी। नरो हरनहार नहीं कोई, क्यों मानत डरली ॥१॥ काम लिपत करमनतें न्यारो केवल मैं दरसी। ज्यो तिल तेल मैल सुवरण में, क्यों पुदगल परली ॥२॥ जबलग एरर्फ निजकर मानत, तवलग दुखभरसी। छुटै नाहिं काल के करसैं, मर मर फिर मरसी ॥३॥ पूजा दान शील तप धारो, सब पातिग धरती। नयनानद सुगुरुपद सेवो, मरसागर तरसी ॥४॥