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[ १३ ] धनुप तीनसै तुङ्ग प्रभु तुम, सब भव भोग बिसारे । कर्मघातिया तोड़ छिनक में, लोकालोक निहारे ॥२॥ विश्वतत्व ज्ञायक जगनायक, जीव अनन्त उबारे । बिन कारण भ्राता जगत्राता, हगसुख शरण तिहारे ॥३॥
२३-राग भैरूंनर [श्रीपद्मप्रभु] बन्दन फूप्रभु बन्दन कुं हम आये हैं, पदम प्रभु बन्दन फं।टेक ॥ जन्म लियो कोशाम्बी नगरी, भविजन पाप निकन्दन कुं॥ १॥ मात सुसीमा गोद खिलाये, पूजं धारण नन्दन कुं ॥२॥ बन्श इक्ष्वाकु कृतारथ कीनो, दूर किये दुखद्वन्दन कू॥३॥ नयनानन्द कहें सुनि स्वामी, काटि मेरे भव फन्दन कुं॥४॥
२४-रागसारङ्ग (श्रीमुपाश्वनार्थ) देव सुपारस ध्याइये, अरे मन देव सुपारस ध्याइये ॥ टेक ॥ भव आबाप निवारण कारण, घसि घनसार चढाइये ॥१ अक्षत ले प्रभु चरण चढावो, तुग्त अखय पद पाइये ।।२।। भरि पुष्पांजली पूजन कीजै, मद कन्दर्प नसाइये ॥३॥ अपनी क्षुधा हरण के कारण, उत्तम चरु अरचाइये ॥४॥ नाशे मोह महा तम भारी, दीपक ज्योति जगाइये ॥ ५॥ करमवन्श बिध्वन्स करन को, धूप दशांग जराइये ॥ ६ ॥ फलते फल शिव पद को पावै, नयनानन्द गुणगोइये ॥ ७ ॥
___२५-राग पीलू-पंजाबी ठुमरी श्रीचंद्रप्रभु दिल लागा मेरावे, भलादिल लागा मेरावे, श्रीचंदाप्रभुदेनाले ॥टेक॥ भव अनन्त उद्धार कियो तुम, ऐसे दीन दयाले ॥१॥