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[१२] २०-राग विलावल (श्रीसंभवनाथ)
सभवनाथ हरो मम आरत, आ पकड़े प्रभुचरण तुम्हारे ।। टेक ।। तुम विन कौन हरै मम पातक, तुम बिन कौन सहाय हमारे । धनुषच्यार शत मुरति तुमरी, निरखत उपजत हरप अपारे । सुनियत जन्मपुरी सावस्ती, सुनयत घोटक चिह्न तुम्हारे । पिता जितारथ सेना माता, साठलाख पूरव थिति धारे ॥२॥ ऊरय ग्रीवकत चय आये, तुम जग जाल विदारन हारे । गसुख देखि दिगम्बर तुमको, और लगें लव देव ठगारे ॥३॥
२१- रागनी टोड़ी (श्रीअभिनन्दननाथ) जै जै जै संवर नृपनन्दन अभिनन्दन तृप जगत अधार ॥ टेक ॥ विज विमान त्यागि तुम आये, सिधअर्था के गर्भ मझार । जन्मे माघ सुदी द्वादशि को. नगर अयोध्या सुखदातार ॥ १॥ जिस दिन जन्म उसी दिन दिक्षा, ज्ञान पौषवदि चौथ अपार । भये सिद्ध वैशाख सुदी छठ, पूरव लाख पचास उमार ॥२॥ धनुष तीनसै साढे काया, स्वर्ण वर्ण कपि चिह्न तुम्हारे । तुम इक्ष्वाकुवंशके भूषण, सुरनर गावत सुजस अपार ॥ ३ ॥ नैनानन्द भयो अब मेरे, देख दिगम्बर मुद्रासार। सुन सुन वचन विगतमल तुमरे दीने कुगुरु कुदेव विसार ॥४॥
२२-रागनी जोगिया असावरी श्रीमुमतिनाथ म कुमति बिनाशन हारे, सुमति जिन कुमति विनाशन होरेटेका तात सुमेध मंगला माता, खग पग क्रौंच तुम्हारे। लीनो जन्म अयोध्या नगरी, वन्श इक्ष्वाकु मझारे ॥ १॥