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अनमः सिद्धेभ्यः ॥
नयनसुखदास रचित ---
॥ जैन भजन संग्रह ||
मंगलाचरण |
दोहा - ज्ञानानंद मनंत शिव, अर्हन मंगल मूल ।
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कलिल कुलाचल तोड़कर, हरोनाथ भवसूल || } तुम शिव भगनेतार हो, भेत्ता कर्म पहार | विश्व तत्व ज्ञाता परम, लो सुधि बेग हमार ॥ तुम त्रिभुवन के भनु हो, मैं खद्योत समान । कैसे तुम गुण वर्णऊ, अल्प मतिन की वान ॥ हृदय भक्ति प्रेरक भई, बलकर पकरे कान | ला पटक्यो पदकमल बिच, सकल जगत गुरुजान ॥ तुम अनंत गुण आगरे, पटतर अवरन कोय | तुम वाणी तैं जानिये, जो कछु जग में होय ॥ भूत भविष्यत कालकी, पट द्रव्यन पर जाय । वर्तमान रूम तुम लखो, हस्तामलक सुभाय ॥ सकल चराचरजगतथित, ज्ञान मुकररही सूझ । ताते तुम अर्हत हो, सकल जगत करि पूज ॥