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महाचंद जन भजनावलो। ३७] म पद मस्तक नाई॥ याही० ॥ ४॥ जन्म मरण दुख बेगि मिटावो करि त्रिभुवनमें राई ॥ या ही० ॥ ५ ॥ बुध महाचन्द्र चरण पै ठाडी जाचत है शिव सुख दाई । याही० ॥ ६॥
(४८) कैसे कटै दिन रैन दरस बिन, कैसे ॥ टेर जोपल घटिका तुम बिन बीतत सोही लगै दुख देन ॥ दरश० ॥ १॥ दरशन कारण सुरपति रचिये सहस नयन की लैन ॥ दरव० ॥२॥ज्यों रवि दर्शन चक्र वाक युग चाहत नित प्रनि सैन। दर्श० ॥३॥ तुम दर्शन तै भव भव सुखिया होत सदा भबि मैन ॥ दर्श० ॥ ४ ॥ तुमरो सेवक लखि हैं जिन बुध महाचन्द्र को चैन ॥ दर शबिन०॥५॥
जिनराज अरज हमरी याही ॥ टेर ॥ आप तो नाथ मुकतिपुर बैठे हम भव रूप परे खाई जिन० ॥ १॥ तारण तरण बिरद तुम सुणियो