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________________ ३२] महाचंद जैन भजनावलो। ॥ इन्द्र धणेन्द्र नरेन्द्र खगेन्द्र जले जीते सवरणमें । वाल जवान बृद्ध नहीं पूछ निरधन सधन गिलनमें । देखो० ॥ २ ॥ साह चोर सूरे कायर सब तिष्ठ जाके बदनमें । रोगी सोगी भोगी दी न सब चरबण किये जिही छिनमें ॥ देखो० ॥ ३॥ उद्धं अधः सागर गिर गहरे कहांहु नाहि सरनमें। जहां जहां जाय जीव सरनाके तहां तहां खाक जगनमें ॥ देखो० ॥४॥ ऐसो काल वलीको जीते तिष्ट शिव महलनमें । तिनको देखि हर्ष है पंडित महाचन्द्रके तनमें ॥देखो० ॥ ५॥ (४२) मिथ्याती जीवड़ा मुनि बचन न मानैरे ॥ मिथ्या० ॥ टेर ॥ अंति मुक्ति मुनियूकहीजी जो देवकी सुतहोय। सोही हणे जीवंजिसा तेरा नाथ तात यह दोय ॥ मिथ्या० ॥ १॥ कंस जाय बसुदेव सेकही जाचतहैं हम तोय । देवकी के सुत मोघरा होवै यह वर दीजो.मोय ॥ मिथ्या० ॥२॥ मल्ल युद्ध के मायनैजी हरिबृन्दा बनते
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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