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बुधजन विलास
जी॥ म्हारो० ॥टेक ॥ ठोर ठौर सारे जग भटक्यो, ऐसो मिल्यौ नहिं कोय । चंचल चित मुझि अचल भयौ है, निरखत चरनन तोय॥ म्हारो० ॥१॥ हरप भयौ सो उर ही जानें,वरनौं जात न सोय । अनंतकालके कर्म नसेंगे सरधा बाई जोय॥ म्हारो० ॥२॥ निरखत ही मिथ्यात मिट्यौ सब, ज्यौं रवितें दिन होय । बुधजन उरमैं राजौ नित प्रति, चरनकमल तुम दोय ॥म्हारो० ॥ ३ ॥
(१०२ ) राग-विहाग । सीख तोहि भाषत हूं या, दुख मैंटन सुख होय ॥सीख ॥ टैक ॥ त्यागि अन्याय कषाय विषयकों, भोगि न्याय ही सोय ॥॥ सीख० ॥१ म. धरमराज नहिं दंडे, सुजस कहै सब लोय । यह भी सुख परभौ सुख हो है, जन्म जन्म मल धोय॥ सीख० ॥२॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म न पूजौ, प्राण हरौ किन कोय । जिनमत जिनगुरु जिनवर सेवौ, तत्त्वारथ रुचि जोय ॥ सीख० ३