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बुधजन विलास
५१ (६३) राग-सोरठ। । कीपर करौ जी गुमान, थे तौ कै दिनका मिजमान ॥ कींपर० ॥ टेक ॥ आये कहांत कहां जावोगे, ये उर राखो ज्ञान ॥कीपर० ॥१॥ नारायण बलभद्र चक्रवार्त,नाना रिद्धिनिधान । अपनी बारी भुगतिर, पहूंचे परभव थान ।कीपर० ॥२॥ झूठ बोलि मायाचारीत, मति पीड़ा परप्रान । तन धन दे अपने वश बुधजन; करि उपगार जहान ॥ कींपर० ॥३॥
(६४) राग-सोरठ, एकतालो। चंदाप्रभु देव देख्या दुख भाग्यौ ॥ चंदा० टेक । धन्य दहाड़ो मन्दिर प्रायो, भाग अपूरब जाग्यौ ॥ चंदा०॥ १॥ रह्यो भरम तब गति गति डोल्यो, जनम-मरन दौं दाग्यौ। तुमको देखि अपनपो देख्या, सुख समतारस पाग्यौ ॥ चंदा०॥२॥ अब निरभय पद बेगहि पास्यों हरष हिये यौँ लाग्यौ । चरनन सेवा करै निरं तर, बुधजन गुन अनुरागों ॥ चंदा० ॥३॥