________________
वुधजन विलास गति फिरतां, दर्शनपायौ आज। बारंबार वीनवैबुधजन, सरन गहेकी लाज॥म्हारी० ॥३॥
(६१) राग-सोरठ। छिन न बिसारां चितसौं, अजी हो प्रभुजी थांनै ।चिन टेक। वीतरागछवि निरखत नयना, हरष भयो सो उर ही जानै । छिन० ॥१॥ तुम मत खारक दाख चाखिके, प्रान निमोरी क्यौं मुख प्रावै। अब तो सरन राखि रावरी, कर्म दुष्ट दुख दे छै म्हांनै ॥ छिन० ॥२॥ वस्यौ मिथ्यामत अम्रत चाख्यौ, तुम भाख्यौ, धारया मुझ कानै। निशिदिन थांकौ दर्शमिलौ मुझ बुधजन ऐसी अरज बखानै ॥ छिन० ३
बन्यौ म्हारै या घरीमै रंग ॥ बन्यौ टेक ॥ तत्वारथकी चरचा पाई, साधरमीको संग ॥ बन्यौ० ॥१॥ श्रीजिनचरन बसे उरमाहीं, हरष भयो सब अंग। ऐसी विधि भव भव, मिलिज्यौ, धर्मप्रसाद अभंग ॥ बन्यौ ॥२॥