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बुधजन विलास श्रान-पान लखि प्रान भगे तुम, परनति करि
लई भान ज्ञान० ॥।' निपट कठिन मानुष ___ भव पायौ, और मिले गुनवान। अब बुधनन जिनमतको धारौ, कारे पापा परिवार ज्ञा.
(८७) राग-केदागे एकतालो। अहो मेरी तुममौं बनती, सब देशनि के देव • अहो०॥टफा य दूरानजुन तुम नि दूषन जग. तहितू स्वयमेव । अहा०॥१॥ गति अनेकने अनि दुव प.यो, लीने जम अली । हामंकट हर दे बुमन सकौं, भाभा तुम पद सेव ॥ अहो० ॥२॥
(८८) राग-केदारो। याही मानौं निश्च र मानौं तुम बिन और न मानों याही० टंक । अवलौं गति गति, दुख पायौ, नाहि लायों सरधानों ॥याही० ॥ दुष्ट मतावत कर्मनिरंतर कमें कृपा इन्हें भानों
भक्ति तिहारी भत्र भा पाऊं, जौलो लहों शिक्ष__ थानौं। याही ।।२।।।