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________________ चुधजन विलास जब लौं चरन निकट नहिं आया, तब श्राकुलता थ. य । वावत ही निज निधि पाया, निति नव मंगल पाय, तोरे दरसनसों || मेरो० ॥ २ ॥ बुध करै कर जोरै, सुनिये श्रीजिनराय जब लौं मोख होय नहिं तव लौं, भक्ति करूं गुन गाय, तोरे दरसनसौं | मेरो० ॥ ३ ॥ ४७ (5%) मोहि अपना कर जान, ऋषभजिन ! तेरा हो || मोहि० ॥ टेक ॥ इस भवसागरमाहिं फिरत हूं, करम रह्या करि घेरा हो || मोहि० ॥ १ ॥ तुमसा साहिब और न मिलिया, सह्या भौतभट भेग हो || मोहि • ||२|| बुधजन अरज करे निशि वासर, राखौ चरनन चेरा हो || मोहि० ३ ( ८६ ) ज्ञान विन थान न पावगे, गति गति फिरोगे अजान ॥ ज्ञान० ॥ टेक ॥ गुरुउपदेश लह्यौ नहिं उर में, गह्यौ नहीं सरधान ॥ ज्ञान० ॥ १ ॥ विषयभोग में राचि रहे रति राद्रे कुध्यान
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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