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वुधजन विलास उदय सुख प्रायां.राजो मात्रौ जी। पाप उदय पीड़ा भोगनमैं, क्यों मन काचौ जी। मतिः॥ २। सुख अनन्तके धारक तुम ही,पः क्यों जांचों जी।बुधजन गुरुका वचन हियाम, जानौ सांचौ जी॥ मति० ॥३॥
(७६) थांका गुन गास्यांजी जिनजी राज, थांका दरसनअघ नास्या ॥ थांका०॥ टेक ॥ थां सारीखा तीन लोकमैं, और न दूजा भास्या जी ॥ जिनजी० ॥१॥ अनुभव रस सींचि सींचिकै, भव प्राताप बुझास्यां जी। बुधजनको विकलप सब भ.ग्यौ, अनुक्रमशिव पास्यां जी। जिनजी०॥२॥
(८०) सम्यग्ज्ञान बिना, तेरोजनम अकारथ जाय ॥सम्यग्ज्ञान० ॥टेका अपने सुखमैं मगन रहत नहिं परकी लेत बलाय । सीख सुगुरु की एक न माने, भव भवमै दुख पाय ।। सम्यग्ज्ञान० ॥१॥