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बुधजन विलास तिरजग, सब भोजन के साज । ऐमौकाल हरस्यै तुम साहब, यातें मेरी लाज ॥ बेगि ।२। पर घर डोलत उदर भरनकौं, होत प्रात” सांज । डूबत पाश अथाह जलधिमैं, यो समभाव जि. हाज ॥बेगि० ॥३॥ धना दिनाको दुखो दयानिधि,ौमर पायौ आज । बुधजन सेवक ठाड़ो बिनवै, कीज्यौ मेरो काज ।। बाग०॥४॥
(७७) राग-सोरठ। गुरुन पिलायोजी, ज्ञान पिलाया ॥ गुरु० ॥ टेक॥ भइ बेखबरी परभावांकी, निजासमैं मनवाला ॥ गुरु०॥ यों तो छाक जात नहिं छिनई, मिटि गये भान जाला। अद्भुत प्रा. नद मगन ध्यान, बुधजन हाल समाला गुरु:
(७८) राग-सोरठ। मति भोगन राचौजी, भव भवमैं दुख देत घना ॥मति०॥ टेक। इनके कारन गति गति मांही, नाहक न चौनी । झूठे मुखके काज धरममें पाडौ खांची जी मतिः ॥ १ ॥ पूरवकर्म