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वुधजन विलास पुनि दरमाय ॥हो ॥१॥ उर्वशि नृत्य करत ही मनमुग्व, अमर परत है पाय (?) । ताही छिनमें फून वनायौ, धूा परै कुम्हलाय (?) । हो. ॥२॥ नागा पाय फिरत घर घर जब सा कर दीनौराय । ताहीको नरकन मैं कूकर, तोरिनोरि तन खाय॥हो० ॥३॥ करम उदय भूलै मति श्रापा, पुरषारथको ल्याय । बुधजन ध्यान धरै जब मुहुरत,तब सबही नसिजाय ॥हो० ॥४॥
(७४) जिनवानी के सुनौं मिथ्यात मिटै । मिथ्यात निटै ममकित प्रगटै।। जिनवानी०॥ टेक ॥ जैमैं प्रात होत रबि ऊगत, रैन तिमिर सब तुरत फटे ॥जिनबानी।।अनादि काल की भूलि मिटावै पानी निधि घट घटमैं उघटै। त्याग विभाव मुभाव सुधार, अनुभा करतां करम कटै।। जिन वानो० ॥२॥ और काम तजि सेवो वाकौं, या बिन नाहिं अज्ञान घटै। बुजन वाभव परभव मांहीं, वाकी हुंडो तुरत पट ॥ जिनवानी० ॥३॥