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बुधजन विलास लि बंध भये इक, ज्यों पयमाहीं पानी। जुदा जुदा सरूप नहि मान, मिथ्या एकता मानी। ॥तरी० ॥२॥हूं तो बुधजन दृष्टा ज्ञाता, तब जड़ सरधा पानी । ते ही अविचल सुखी रहँगे होय मुक्ति वर प्रानी ।। तेरी ॥३॥
(७२) राग-ईमन । तू मेग कह्या मान रे निपट अयाना ॥तू. ॥टेक॥ भव वन वाट मात सुत दारा, बंधु पथिकजन जान रे । इन” प्रीति न ला बिछुड़ेंगे, पावैगो दुख खान रे ।। तू० ॥१॥ इकसे तन आतम मति आन, यो जड़ है तू ज्ञान रे। मोह उदय वश भम्म परत है, गुरु सिखवत सरधान
रे ॥ तू० ॥ वादल रंग सम्पदा जगकी, छि_ नमैं जान बिलान रे । तमाशवीन वनि यात वुधजन, सव” ममता हान रं ॥ तू.॥३॥
(७३) गग-ईमन तेतालो। हो विधिनाकी मोपै कही तौ न जाय ॥ हो. ॥टेक । मुनट उलट उलटा सुलटा दे, अदरस