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________________ बुधजन विलास ३५ (६२) राग-कान्हरो। हो मना जी,थारी वानि,बुरी छै दुखदाई हो० ॥ टेक ॥ निज कारिजमें नेकु न लागत, परसौं प्रीति लगाई हो० ॥ १॥ या सुभावसों अति दुख पायो सो अब त्यागो भाई ।। हो०२ बुधजन औसर भागन पायो, सेवो श्रीजिनराई हो० ॥ ३॥ (६३) राग-गारो कान्हरो। - हो प्रभुजी,म्हारो छै नादानी मनड़ो ॥ हो. टेक ॥ १ ल्यावत तुम पद सेवन कौं, यो नहिं आवत है-बगड़ो जी ॥ हो ॥ १॥ यावौ सुभाव सुधारि दयानिधि,माचि ग्टो मोटो झगड़ो जी ।। हो ॥२॥ बुधजनकी विनती सुन लीजे कहजे शिवपुरको डगड़ो जी ॥ हो० ॥३॥ रे मन मेरा, तू मेरो क्यों मान मान रे ॥ रे मन० ॥ टेक म अनत चतुष्टय धारक तूही, दुख पावत बहुतेग॥ रे मन० ॥१॥ भोग विष. यकाअातुर है कै, क्यों होता है चेरा॥ रे मन
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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