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________________ वुधजन विलास (६०) राग-गारो जल्द तेतालो। ___ म्हारी भी सुणि लीज्यो, हो मोकौं तारण, सुफल भये लखि मोरे नैन ।। म्हारी० ॥ टेक ॥ तुम अनंत गुन ज्ञान भरे हो. वरनन करते देव थकत हैं, कहि न सकै मुझ वैन ॥ म्हारी ॥१॥ हमतो अनत दिन अनत भरम रहे,तुमसा कोऊ नाहिं देखिये,प्रानंदघन चित चैन ॥ म्हारी. ॥२॥ बुधजन चरन शरन तुम लीनी,बांछा मेरी पूरन कीजे,मंग न रहै दुखदैन म्हां ॥३॥ (६१) राग-गारो कान्हरो। थांका गुण गास्यां जी श्रादिजिनंदा ॥ थांका० ॥टेक ॥ थांका वचन सुण्यां प्रभु मून म्हाग निज गुण भास्यां जी॥ आदि० ॥ १॥ म्हारा सुमन कमल मैं निशिदिन, थांका चरन वसाच्या जी ॥ आदि. ॥ २॥ यही मृन लगन लगी छ, सुख द्यदुःख नसास्वां जी ॥ आदि. ॥३॥ बुधजन हरष हिये अधिकाई, शिवपुरवासा पास्यां जी ॥ आदि. ॥ ४ ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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