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बुधजन विलास
है बंदा ।। सुनियो० ॥ टंक ॥ खोमि ज्ञान धन कीनों जिन्दा (?), डारि ठगौरी धंदा । मुनिया० ॥१॥ कर्म दुष्ट मेरे पीछ लाग्यौ, तुम हो कर्मनिकंदा ॥मुनियो० ॥२।। बुधजन अरज करत है साहिब, काटि कर्मके फन्दा मुनियो० ॥२॥
५७ राग-खमात्र । _ छवि जिनगई गनै छै ॥छवि० ।टेका तरु अशोकतर मिहामनग, वैठे धुनि घन गाजै छ । छवि० ॥१॥ चमर छत्र भामंडनदुर्तिपै, कोटि भानदुति लाजै छै। पुष्पवृष्टि मुर नभ दुन्दुर्भि, मधुर मधुर सुर बाजै छै छाब० ॥२॥ सुर नर मुनि मिलि पूजन आवै, निरखत मनड़ा छाने छै । तीनकाल उपदेश होत है, मवि बुधजन हित काजे छ । छबि० ॥३॥
५८ राग- खंमाच। ऐमा ध्यानलगावा भव्य जामौं, सुरग मु. कति फल पावो जी। एमा०॥ टक ॥ जामैं बंध परै नाहिं ग्रागें पिछले बंध हटाबो जी ।। एमा०