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वुधजन विलास
मँटा गति गति फेरा मैं० ॥ २ ॥ और जंजाल टॉल सब मेरा, राखौ चरनन चैरा ॥ मैं० || ३ || बुधजन और निहारि कृपा करि, बिन वै वारूं वेरा ॥ मै• ॥४॥
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५६ रोग -अहिंग |
क्या किया नादान, तैंतो अमृत तजि विष लीना ॥ तैः ॥ टेक ॥ लख चौरासी जोनि माहित, श्रावक कुल मैं आया | अब तजि तीन लोकके साहिब, नवग्रह पूजन धाया ॥ तें ॥१ ॥ वीतराग के दरसन हीतें, उदासीनता श्रावै। तू तौ जिनके सनमुख ठाड़ा, सुतको रुपाल खिलावे ॥ तै० ॥२॥ सुरंग सम्पदा सहजै पावै, निश्चय मुक्ति मिलावे । ऐसी जिनवर पूँजन सेती, जगत कामना चावै ॥ तै० ॥३॥ बुधजन मिलें सलाह कहैं तब, तू वा खिजि जावें । जथाजोग
जथा माने, जनम जनम दुख पावै ॥ ते ०|४|
५६ रांग - खमाव !
सुनियों हो प्रभु आदि जिनंदा, दुख पावत