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वुधजन विलास
न्यारा रे ॥ बाबा ॥२॥ मुझ विभाव जड़ कर्म रचत हैं, करमन हमको फेगरे । विभाव चक्र तजि धारि सुभावा, अब अान्दघन हेगरे।। बाबा० ॥३॥ खरच खेद नहिं अनुभव करते, निरखि चिदानंद तेरा रे। जप तप व्रत श्रुतमार यही है, बुधजन कर न अबेरारे ॥ बाबा०।४।
(४३) ___ और सबै मिलि होरि रचावै, हूं काके संग
खेलौगी होरी। और०॥टेक।। कुमति हरामिनि ज्ञानी पियापे, लोभ मोहकी डारी ठगैरी। भारै झूठ मिठाई खवाई,खों मिल ये गुन करि बरजोरी ॥ और० ॥१॥ आप हि तीन लोकके साहब, कौन कर इनकै सम जोरी। अपनी सुधि कबहूं नहिं लेत, दाम भये डोले पर पौरी ॥ौ ०२।।
गुरु बुधजनतें सुमति कहत हैं, मुनिये अरज द__ याल सुपारी । हा हा करत हूं पांय परत हूं,
चेतन पिय कोजे मोोग ॥ और० ॥३॥