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वुधजन विलास
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हो० ॥टेक ।। आदि अन्त अविरुद्ध वचनतै, संशय भ्रम निरबारोगी॥हो०॥१॥ज्यौं प्रतिपालत गाय वत्सकौं, त्यों ही मुझकौं पारोगी। सनमुखकाल बाघ जब आवै, तब तत्काल उवा रोगी॥ हो॥२॥ बुधजन दास बीनवै माता, या विनती उर धारोगो। उलझि रह्यो हूं मोहजालमें, ताकौं तुम सुरझारोगी॥हो ॥३॥
११-राग विलावल कनड़ी। ___ मनकै हरष अपार-चितकै हरष अपार, वानी सुनि ।।टेक। ज्यौं तिरषातुर अम्रत पीवत, चातक अंबुदधार ॥ वानी सुनि० ॥१॥मिथ्या तिमिर गयोतताखन हो, संशयभरम निवार। तत्वारथ अपने उर दरस्यौ, जानि लियो निज सार । वानी सुनि० ॥२॥ इन्द नरिंदं फनिंद पदीधर, दीसत रंक लगार। ऐसा आनंद बुधजनके उर, उपज्यौ अपरंपार ॥ वानी सुनि०।३।
११-राग अलहिया। चन्दजिनेसुर नाथ हमारा, महासेनसुत