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वुधजन विलास तोकू नाहिं बचा, तो सुभटनका रखना क्यारे ।। काल• ॥ १॥रंच संबाद करिनके काज,नर कनमैं दुख भरना क्या रे। कुलजन पथिकनिक हितकाजै,जगत जालमें परना क्या रे काल ॥२॥ इंद्रादिक कोउ नाहिं बचैया, और लोकका शरना क्या रे । निश्चय हुश्रा जगतमें मरना,कष्ट परै तब डरना क्यारे काल• ।३। अपना ध्यान करत खिर जाव, तो करमानेका हरना क्या रे। अब हित करि भारत तजिबुध. जन, जन्म जन्ममे जरनाक्यारे।।काल १४
६ भजन
म्हे तो थापर वारी, वारी वीतरागीजी शांत छबी थांकी शानदकारी जी ॥ म्ह• ॥ टेक । इंद्र नरिंद्र फनिंद्र मिलि सेवत,, मुनि सेवत रिधिधारी जी ॥ म्ह॥ १॥ लख अविकारी परउपकारी, लोकालोकनिहारी जी॥ म्हे.२॥ सब त्यागी जा कृपातिहारी बुधजन ले बलिहारी जी। म्है• ॥३॥