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________________ जैन शतक-इसमें १०० उपयोगी शिक्षाप्रद सवैये स्व० कविवर भूघरदासजीके दिये गये हैं। त्यो० =) मात्र ।। सूत्र भक्ताभर महावीराष्टक-तोनों पाठ एक साथ बड़े अक्षरों में दिये हैं। न्यो० =)। समायक पाठ सार्थ-पं० कस्तूरचंद कृत मू० -) __पंच मंगल-मूल पांचों मंगल और अभिषेक पाठ भी है। मू०-) समाधि मरण-बबईया टाइपमें नया ही छपा है। बड़ा समाधिमरण यही है। न्यो० -) दर्शन पाठ-पृष्ठ १६ प्रतिदिन काममें आने वाले पूजा पाठ स्तुति, आरती आदि हैं। न्यो०-) मेरी भावना-पं० जुगलकिशोर कृत पृष्ठ १६ च्चम वार्डर वाली मू०)। कुमारी अनंतमतीको ५ गुणभद्रजी कविरत्नने कवितामें लिखा है। न्यो० ) विद्युत चोर-नाटक नवीन छपा है। मू०१) अरहंतपासा केवली- इस छोटीसी पुस्तकमें कविवर वृन्दावनदासजीने शुभ अशुम जाननेके लिये बड़ा सुन्दर उपाय बताया है। न्यो० ॥ मात्र । निर्वाणकांड आलोचना, सामायक पाठ मू० -- विनती संग्रह-सचित्र नवीन छपकर तैयार है। -)| छहढाला-मूल दौलतरामजी कृत मू० -)
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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