________________
छत्तीसं सिण्णिसया छावहि सहस्सवार मरणानि । अन्तो मुहत्तमझे पत्तोसि निगोद* वासम्मि ॥ २८ ॥
षट् त्रिंशत्रिशत षट् यष्टि सहस्रवारान् मरणानि । __ अन्त मुहूर्त मध्ये प्राप्तोसि निकोत वासे ॥
अर्थ-तुमने निकोत अवस्था में अर्थात अलब्ध पर्याप्तक अवस्था में अन्तर्मुहूर्त में ६६३३६ (छासठि हजार तीन से छत्तीस) थार मरण किया है।
वियलिन्दिए असीदि सही चालीसमेव जाणेह । पश्चेन्दिय चउवीसं खुद्दभवन्तोमुहूत्तस्स ॥ २९ ॥ विकलेन्द्रियाणाम् अशीतिः यष्टिः चत्वारिंशदेव जानीत ।
पञ्चेन्द्रियाणां चतुर्विंशतिः क्षुद्रभवा अन्तर्मुहूर्तस्य । अर्थ--अन्तर्मुहूर्त में विकलत्रय के ( द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय क्रम से ८० अस्सी ६० साठि और ४० चालीश क्षुद्रभव हैं तथा पञ्चन्द्रिय के २४ चौवीस होते हैं ऐसा जानो । अर्थात अन्तर्मुहूर्त में दो इन्द्री जीव अधिक से अधिक ८० और तेइन्द्रीय ६० चौइन्द्रिय ४० और पञ्चेन्द्रिय जीव २४ जन्म धारण कर सक्ता है
* प्राकृत में जो निगोद शब्द है उसकी संस्कृत प्रकृति निकोत है निगोद नहीं है । निगोद तो एकेन्द्रिय वनस्पतिकाय का भेद प्रभेद है। और निकोत त्रसों की भी पर्याय का वाचक है । तदुक्तं श्री अमृतचन्द्रसूरिभिः पुरुषार्थसिद्ध्युपाये आमास्वपि पक्कास्वपि विपच्यमानासु मांस पेशीषु सातत्येनोत्पादस्तज्जातीनां निकोता. नाम् ६ ७ । इहां पर भी “निकोत" शब्द का अर्थ अलब्ध पर्याप्तक है । क्षुद्र भवों की संख्या इस प्रकार है। सूक्ष्मपृथिवीकायिक १ वादरपृथिवीकायिक २ सूक्ष्म जलकायिक ३ वादरजलकायिक ४ सूक्ष्मतेजस्कायिक ५ वादरतेजकायिक ६ सूक्ष्म वायुकायिक ७ वादरवायुकाविक ८ सूक्ष्मसाधारणनिगोद ९ वादरसाधरणनिगोद १० सप्रतिष्ठित वनस्पति ११ इन प्रत्यक के ६०१२ मरण हैं सर्वमिलकर एकेन्द्रिय के (६०१० ४ १ = २६१३२ हुवे । द्विन्द्रीय के ८० त्रीन्दिय के ६० चतुरिन्द्रिय के ४० और पञ्चन्द्रिय के - ४ । सर्व मिलकर (६६१३२+ ८०+६+ + २४-) ६६३३६ छासठि हजार तीन से छत्तीस हुवे ।