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( ५० ) उसम मध्यमग्रेहे दरिद्रे ईश्वरे निरपेक्षा। सर्वत्र ग्रहीतपिण्डा प्रव्रज्या ईदृशी भाणता ॥
अर्थ--उत्तम मकान ( राजमहल ) मध्यम मकान (साधारण घर) दरिद्र पुरुष, धनी पुरुष इन में विशेष अपेक्षा रहित अर्थात् यह उत्तम मकान है इसमें भोजन अच्छा मिलंगा यह साधारण घर है यहां भोजन करने से हमारी मान्यता बढेगी यह निधन है यहां न जावं यह राजा है यहां जावं इत्यादि विशेष अपेक्षाओं से रहित हो (किंतु ) सर्वत्र सुयोग्य सदग्रस्था के घरो में आहार ग्रहण किया जावे एसी प्रव्रज्या जिन शासन में कही है।
णिग्गंथा णिसंगा णिम्माणासा अराय णिदोसा । णिम्मम णिरहंकारा पन्चज्जा एरिसा भाणया॥४९॥ निग्रन्था निस्सना निर्मानाशा अरागा निर्दोषा ।
निममा निरहंकारा प्रव्रज्या इदृशी भाणता ॥
अर्थ-परिग्रह रहित, स्त्री पुत्रादिककों के संग से रहित, मान कपाय तथा आशा (चाह ) से रहित, राग रहित दोषरहित, ममकार अहंकार रहित ऐसी प्रव्रज्या गणधर दवा न कही है।
णिण्णहा णिल्लोहा, णिम्मोहा णिब्वियार्गणकलुसा। णिब्भय निरास भावा पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥५०॥
निस्नेहा निल्लोपा निर्मोहा निर्विकारानि :कलुषा । निर्भया निराशभावा प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥
अर्थ-जहां पर स्नेह, ( राग ) लोभ, मोह, विकार, कलुषता, भय और आशा परिणाम नहीं है ऐसी जिन शासन में प्रव्रज्या (दीक्षा ) कही है।
जह जाय रुप सरिसा अवलंविय भुअ निराउहा संता। परकिय निलय निवासा पवजा एरिसा भणिया ॥५१॥
यथा जात रूप सदृशा अवलम्बित भुजा निरायुधा शान्ता । परकृत निलय निवासा प्रव्रज्या ईदृशी भाणता ॥