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अर्थ - वचनगुप्ति १ मनोगुप्ति २ ईर्यासमिति ३ आदान निक्षेपण समिति ४ आलोकित भोजन ५ यह अहिंसा महाव्रत की ५ भावाना हैं ।
कोह भयहासलोह मोहा विपरीय भावना चैव । विदियस्स भावणाए पंचेवय तहा होंति ||३३||
का भय हास्य लोभ मोह विपरीता भावना चैव । द्वितीयस्य भावना एता पश्चैव च तथा भवन्ति ॥ अर्थ -- क्रांध त्याग १ भय त्याग २ हास्य त्याग ३ लोभ त्याग ४ मोह त्याग ५ यह ५ भावना सत्य महाव्रत की हैं। सूण्णायार निवासो विमोचितावासनं परोधंच । एषणशुद्धि सतं साहम्मि विसंवादे ||३४||
शून्यागार निवासो विमोचिता वासः परोधञ्च । एषणशुद्धि सहितं साधर्मा विसंवाद || अर्थ- शून्यागार निवास अर्थात शूने मकान में रहना १ विमोचितावास अर्थात छोड़े हुवे मकान में रहना २ परोपरोधाकरण अर्थात जहां पर दूसरों की गंक टोक हो ऐसे स्थान पर न रहना अथवा औरों को न रोकना ३ एपणा शुद्धि अर्थात शास्त्रानुसार पर घर भोजन करना ४ साधर्माविसंवाद अर्थात साधर्मी पुरुषों से विवाद न करना ५ यह ५ भावना अचौर्य महाव्रत की हैं।
महिला लोयण पूव्वरई सरण संसत्त वसहि विकहादि । पुट्टियरसेहि विर भावणा पंचवि तुरियम्मि ||३५|| महिलालोकन पूर्वरतिस्मरण शक्तवसति विकथा । पुष्टरससेवाविरतः भावनाः पञ्चापि तुर्ये ॥
अर्थ - राग भावसहित स्त्रियों को न देखना १ पूर्व की हुवी अर्थात भोगों की याद न करना २ स्त्रियों के निकट स्थान में निवास न करना ३ स्त्री कथा न करना ४ और पुष्टरस अर्थात कामोद्दीपक वस्तु न सेवन करना ५ यह ५ ब्रह्मचर्य महाव्रत की भावना हैं 1