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________________ संखिज्ज मसंखिज्ज गुणं च संसारिमेरुमित्ताणं । सम्मत्त मणुचरंता करंति दुक्खक्खयं धीरा ॥२०॥ संख्येय म संख्येयं गुणं संसारिमेरु मात्र णं । सम्यत्क्वमनुचरन्तः कुर्वन्ति दुखक्षयं धीराः ।। अर्थ--सम्यक्त्व को पालने वाले धीर पुरुष जब तक संसार रहता है अर्थात् जब तक मुक्ति प्राप्त नहीं होती है तब तक संख्यात गुणी तथा असंख्यात गुणी कर्मा की निर्जरा करते हैं और दुःखों को क्षेय करते हैं। दुविहं संयम चरणं सायारं तह हवे निरायारं । सायारं सग्गंथे परिगह रहिये निरायारं ॥२१॥ द्विविधं संयम चरणं सागार तथा भवत् निरागारम् । सागार सग्रन्थे परिग्रह रहिते निरागारम् ॥ अर्थ-संयमाचरण चरित्र दो प्रकार है । सागार (श्रावक धर्म ) और अनागार (मुनिधर्म ) मागार तो परिग्रह सहित ग्रहस्थों कै होता है और निरागार, परिग्रहरहित मुनियों के होता है। दंसण वय सामाइय पोसह सच्चित्त राय भत्तेय । वंभारम्भ परिग्गह अणुमण उद्दिढ विरदीय देशविरदोय २२ दर्शन व्रत सामायिक-प्रोषध. सचित्तरात्रिभुक्ति त्यागः । । ब्रह्मचर्यम्-आरम्भ परिग्रहानुमति उद्दिष्टविरतः चदेशविरतश्च ।। . अर्थ--श्रावकों के यह ११ चरित्र हैं इनके धारण करने वाले श्रावक भी ११ प्रकार के होते हैं । दर्शन १ व्रत २ सामायिक ३ प्राषधापवास ४ सचित्त त्याग ५ रात्रिभुक्ति त्याग ६ ब्रह्मचर्य ७ आरम्भविरति ८ परिग्रहविरति ९ अनुमतिविरति १० उद्दिष्टविरति ११ यह श्रावक की ११ प्रतिमा कहलाती है। पञ्चेवणुव्वयाइं गुणव्वयाई हवन्ति तहतिण्णि । सिक्खावय चत्तारि सञ्जम चरणं च सायारं ॥२३॥
SR No.010453
Book TitleShat Pahuda Grantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
PublisherJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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