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अर्थ--इस
--इस प्रकार कहे हुवे मोक्ष प्राभृत को जो उत्तम भक्तिकर पढ़े है श्रवण करे है भावना ( बार बार मनन) करै है सो अविनश्वर सुख को पावे है।
॥ इति श्रीकुन्दुकुन्दस्वामिविरचितं मोक्षप्राभृतं समाप्तम् ॥ ॥ समाप्तं च षट्प्राभृतम् ॥