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नेपावमोडियमई लिंगं घेत्तूण जिणवरिंदाणं । पावं कुणति पावा ते चत्ता मोक्रसमग्गम्मि ।। ७८ ॥
ये पापमोहितमतयः लिङ्गं ग्रहत्विा जिनवरन्द्राणाम्ः पापं कुर्वन्ति पापाः ते त्यक्ता मोक्षमार्गे ॥
अथे-पाप कार्यों कर मोहित है बुद्धि जिनकी ऐसे जे पुरुष जिनलिंङ्ग (नग्नमुद्रा) को धारण करके भी पाप करते हैं ते पापी मोक्ष मार्ग से पतित हैं।
जे पंचचेलसत्ता गंथमाहीय जाणांसीला। आधाकम्पम्मिरया ते चत्ता मोक्ख मग्गाम्मि ॥ ७९ ॥
ये पञ्चचेलशक्ताः ग्रन्थ ग्राहिणः याचनशीलाः ___ अधः कर्मणिरताः ते त्यक्ता मोक्षमार्गे ॥
अर्थ-जे पांच प्रकार में से किसी प्रकार के भी वस्त्रों में आसक्त हैं अर्थात् रेशम वक्कल चर्म रोम सूत के वस्त्र को पहनते हैं परिग्रह सहित हैं, याचना करने वाले हैं अर्थात् भोजन आदिक मांगते हैं और नीचकार्य में तत्पर है वे मोक्ष मार्ग से भ्रष्ट है ।
णिग्गंथमोहमुक्का वावीसपरीसहा जियकसाया । पावारंभ विमुक्का ते गहियामाक्खमग्गम्मि ॥ ८० ॥ निर्ग्रन्था मोहमुक्ता द्वाविंशतिपरीषहा जितकषायाः ।
पापारम्भ विमुक्ता ते गृहीता मोक्षमार्गे ॥
अर्थ-जे परिग्रह रहित हैं पुत्र मित्र कलित्रादिको से मोह ( ममत्व ) रहित हैं वाइस परीषहाओं को सहने वाले हैं जीत लिये हैं कषाय जिन्होंने और पापकारी आरम्भा से रहित है वे मोक्षमार्ग में गृहीत है अर्थात वे मोक्षमार्गी हैं।
ऊद्धद्धमझलोए केई मज्झण अहयमेगगी।। इय भावणांए जोई पावंतिहु सासयं सोक्खं ।। ८१ ॥ उर्वार्धमध्य लोके केचित् मम न अहकमेकाकी । इति भावनया योगिनः प्राप्नुवन्ति म्फुटं शाम्वतं सौख्यम् ।