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________________ ( १०५ ) अर्थ-हम उनही को मुनि कहते हैं जो समस्त कला शील और संयम आदि गुणों सहित हैं। और जो बहुत दोषों के स्थान हैं और अत्यन्त मलिन चित्त हैं वे बहुरूपिये हैं श्रावक समान भी नहीं हैं। ते धीर वीर पुरुसा खमदमखग्गेणविष्फुरतेण । दुजय पवळवलुद्धर कसायभडणिज्जिया जेहिं ॥१५॥ ते धीर वीर पुरुषाः क्षमादमखनेन विस्फुरता । दुर्जय प्रवलवलद्धर कषाय मटा निर्जिता यैः ।। अर्थ-वही धीर वीर पुरुष हैं जिन्हों ने क्षमा, दम रुपी तीक्ष्ण खड (तलवार) से कठिनता से जीतेजाने योग्य बलवान और बल से उद्धत एस कषाय रूपी सुभटों को जीत लिया है । भावार्थ जो कषायों को जीतते हैं वह महान योधा है, संग्राम में लड़ने वाले योधा नहीं है धण्णा भयवान्ता दसण णाणग्गपवरहच्छेहिं । विसय मयरहरपडिया भवियाउत्तरियाजेहिं ॥१५७॥ धन्यास्ते भयवान्ता दर्शनज्ञानाग्रप्रवरहस्ताभ्याम् । विषयमकरधरपतिताः भव्याउत्तारितायैः ॥ अर्थ-विषय रूपी समुद्र में डूबे हुए भव्य जीवों को जिन्होंने दर्शन शान रूपी उत्तम हाथों से निकाल कर पार किया है वे भय रहित भगवान धन्य हैं प्रशंसनीय हैं। मायावेल्लि असेसा मोहमहातरुवरम्पिआरूढा । विसय विसफुल्लफुल्लिय लुणंति मुणिणाणसच्छेहिं ॥१५८॥ मायावल्लीमशेषां मोहमहातरुवरे आरुढाम् । विषय विषपुप्पपुष्पिता लुनन्तिमुनयः ज्ञानशस्त्रैः ।। अर्थ-दिगम्बर मुनि समस्त मायाचार रूपी बेलि को जो मोह रूपी महान वृक्ष पर चढ़ी हुई है और विषय रूपी जहरीले फूलों से कूली हुई है सम्यगवानरूपी श से काटते हैं। १४
SR No.010453
Book TitleShat Pahuda Grantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
PublisherJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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