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( ९४ ) है अर्थात् यह सारांश हम ने कह दिया है। भावार्थ--पर द्रव्य का प्रहण करना कुशील है। और स्वस्वरूप मात्र का ग्रहण शील है। इस के भेद अठारह हजार हैं । मन बचन काय को कृत कारित अनुमत से गुणों (३४३९ ) तिन को आहार भय मैथुन परिग्रह का त्याग इन ४ संशाओ से गुणों ( ९४४३६ ) तिन को पञ्चेन्द्रिय जय से गुणों ( ३६ ४५- १८०) तिन को पृथिवी, जल, तेज, वायु, कायिक प्रत्येक, साधारण द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रय पञ्चेन्द्रिय इन १० प्रकार के जीवों की हिंसादि रूप प्रवर्तन के परिणामा का न करना तिन से गुणों (१८०x१० - १८०० ) तिन को उत्तम क्षमादि दश धर्मों से गुणों ( १८००x१०)- १८००० अठारह हजार इये उत्तर गुणों के भेद ८४००००० हैं। ये गुण विभाव परिणामों के अभाव से होते हैं इस से उन विभाव परिणामों की संख्या कहते हैं। हिंसा १ अनृत २ स्तय ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ क्रोध ६ मान ७ माया ८ लोभ९ जुगुप्सा१० भय ११ अरति १२ रति १३मनो दुष्टता १४ वचन दुष्टता ५काय दुष्टता१६ मिथ्यात्व १७ प्रमाद १८ पेशून्य १९ अक्षान २० इन्द्रियों का अनिग्रह २१ यह दोष है । इन को अतिक्रम १ व्यतिक्रम २ अतीचार ३ अनाचार ४ स गुणो ( २१४४८८४) । इनको पृथिवी १ अप २ तेज ३ वायु ४ प्रत्येक ५ साधारण ६ द्वीन्द्रिय ७ त्रीन्द्रिय ८ चतुरिन्द्रिय ९ पञ्चन्द्रिय १० इनका परस्पर आरम्भ जनित घात १०० से गुणों ( ८४४ १००% ८४०० ) इनका १० शील विराधना से अर्थात् स्त्री संमर्ग १ पुष्ट रस भोजन २ गन्धमाल्य ग्रहण ३ शयना. सन ग्रहण ४ भूषण ५ गीत संगीत ६ धन संप्रयोग ७ कुशीलों का संसर्ग ८ राज सेवा ९ रात्रि संचरण १० स गुणों ( ८४०० x १० = ८४००० ) इनको १० आलांचना दोषां से अर्थात् आकम्पित १ अनुमित २ दृष्ट ३ बादर ४ सूक्ष्म ५ छन्न ६ शब्दाकुल ७ बहुजन ८ अन्य क्त ९ तत्सेवी १० से गुणों ( ८४.००४ १०- ८४०००० ) इनको उत्तम क्षमादि १० धर्मों से गुणा ( ८४००००४१०= ८४०००००) चौरासी लाख उत्तर गुण होत हैं।
झायहि धम्मं मुकं अई रउदं च झाणमुत्तूण । रुद्दद्द झाइयाई इमेण जीवेण चिरकालं ॥१२१॥