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IN करता है अर्थात् किसी रूप आदिको उपादानभावसे उत्पन्न करता है और किसी रस आदि पदार्थको सहकारीभावसे उत्पन्न
करता है। भावार्थ-चीजपूर रूप आदिकी उत्पत्तिमें तो खयं (खुद) उपादानरूपसे रहता है, और रस आदिकी उत्पत्तिमें
वयं सहकारी कारण होकर रहता है, तो हम पूछते है कि, वे उपादान तथा सहकारी आदि भाव उस बीजपूरपदार्थके आत्मलभूत (निजस्वरूप ) है ? अथवा अनात्मभूत ( परखरूप ) है ! यदि कहो, कि-अनात्मभूत है, तब तो वे उपादानादिभाव उस
बीजपूरपदार्थके खभाव ही नहीं है। और यदि कहो, कि- उपादानादिभाव बीजपूरपदार्थके आत्मभूत हैं, तो अनेक खभावरूप ल होनेसे उस बीजपूरपदार्थके अनेकता हो जावेगी अर्थात् जितने खभाव होंगे उतने ही उन खभावोंके धारक बीजपूरपदार्थ टा
भी होंगे। अथवा उन खभावोंके एकताका प्रसङ्ग होगा। क्योंकि, वे उपादानादिभाव बीजपूरपदार्थसे अभिन्न है । और ही बीजपूर एक है। - अथ य एव एकत्रोपादानभावः स एवान्यत्र सहकारिभाव इति न स्वभावभेद इष्यते। तर्हि नित्यस्यैकरूपस्यापि क्रमेण नानाकार्यकारिणः स्वभावभेदः कार्यसांकय च कथमिप्यते क्षणिकवादिना । अथ नित्यमेकरूप-1ST वादक्रम, अक्रमाच क्रमिणां नानाकार्याणां कथमुत्पत्तिरिति चेत्-अहो स्वपक्षपाती देवानांप्रियो यः खलु स्वय-Mall मेकरमान्निरंशाद्रूपादिक्षणात्कारणाद्युगपदनेककारणसाध्यान्यनेककार्याण्यङ्गीकुर्वाणोऽपि परपक्षे नित्येऽपि वस्तुनि ||१||
क्रमेण नानाकार्यकरणेऽपि विरोधमुद्भावयति । तस्मात्क्षणिकस्यापि भावस्याऽक्रमेणार्थक्रिया दुर्घटा। को अब यदि कहो कि, जो स्वभाव एक स्थानमें उपादानभाव होकर रहता है, वही दूसरे स्थानमें सहकारीभाव हो जाता है, इसलिये की हम पदार्थमें खभावका भेद नहीं मानते है । तो हमारा ( जैनियोंका ) माना हुआ जो एक रूप और क्रमसे अर्थक्रिया करनेवाला नित्यपदार्थ है, उसके तुम क्षणिकवादियों ( बौद्धों ) ने स्वभावका भेद और कार्यसंकरत्व कैसे माना है। भावार्थ-नित्यपदार्थके
माननेमें बौद्ध जो यह दोष देते है कि, “यदि नित्य पदार्थ क्रमसे एक खभावसे अर्थक्रिया करै, तब तो एक ही समयमें अपने सब I कार्य कर लेगा, इस कारण कार्यसंकरता ( सब कार्योंके अभिन्नता) हो जावेगी । और यदि अनेक खभावोंसे अर्थक्रिया करै तो खभा
वका भेद होजानेके कारण उस नित्यपदार्थके क्षणिकताकी प्राप्ति होगी" सो उनका यह दोष देना ठीक नहीं है । क्योंकि, उन्होंने कभी तो एक क्षणिक पदार्थसे उपादान तथा सहकारीभावोंद्वारा अनेक कार्योंकी उत्पत्ति मानकर खभाव भेद नहीं माना है । अब
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