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ही न हों। क्योंकिः सत्व असत्त्व धर्मोको हम एक दूसरेके साथ अभेदभावसे रहते हुए प्रत्यक्ष देखते है । घड़े आदिकोमें जो घडे
आदिकोकी सत्ता रहती है वह असत्ताको छोड़कर कभी नहीं रहती है। यदि सर्वथा सत्ता ही रहै तो उस पदार्थके अतिरिक्त 0 अन्य पदार्थोंकी अपेक्षा भी उस पदार्थका अस्तित्व होना चाहिये । और जो दूसरोकी अपेक्षा भी उसमें अस्तित्व रहेगा अर्थात् ||
वह पदार्थ दूसरोकी अपेक्षा भी अस्तिरूप माना जायगा तो उसके अतिरिक्त दूसरे पदार्थोंका रहना मानना ही निरर्थक है। क्योंकि वह एक ही पदार्थ तीनो लोकोंके संपूर्ण पदार्थ खरूप होनेसे उसीसे संपूर्ण कार्य सिद्ध होसकते हैं। इस प्रकार जैसे सत्व धर्म असत्वको
छोड़कर नहीं रहसकता है तैसे ही असत्व धर्म भी सत्वको छोड़कर नही रहसकता है। क्योंकि सर्वथा असत्व ही हो अर्थात् जैसे धू पर पदार्थोंकी अपेक्षा प्रत्येक वस्तुमें असत्त्व धर्म रहता है तैसे ही यदि निज खरूपकी अपेक्षा भी असत्त्व ही रहेगा तो किसी
वस्तुकी सत्ता ही न रहसकेगी और फिर कुछ न रहनेसे सर्वशून्यता होजायगी। और दूसरी बात यह है कि विरोध तभी!
आसकता है जब कि सत्त्व तथा असत्त्व ये दोनो धर्म एक किसी अपेक्षासे ही मानेजाय । परंतु ऐसा नहीं है। क्योंकि जिस 10 अंशकी अपेक्षा वस्तुको अस्तिरूप मानते है उसीकी अपेक्षा नास्तिरूप नही मानते है किंतु नास्तिखरूप किसी अन्य अपेक्षासे मानते हैं और अस्तिरूप किसी अन्य अपेक्षासे । अर्थात् निजखरूपकी अपेक्षा तो वस्तुको अस्तिरूप मानते हैं तथा निजसे भिन्न वस्तुओंकी| अपेक्षा उसी वस्तुको नास्तिखरूप मानते है।
दृष्टं ह्येकस्मिन्नेव चित्रपटावयविनि अन्योपाधिकं तु नीलत्वमन्योपाधिकाश्चेतरे वर्णाः। नीलत्वं हि नीलीY रागाद्युपाधिकं वर्णान्तराणि च तत्तद्रञ्जनद्रव्योपाधिकानि । एवं मेचकरक्तेऽपि तत्तद्वर्णपुद्गलोपाधिकं वैचित्र्यम
वसेयम् । न चैभिदृष्टान्तैः सत्त्वासत्त्वयोभिन्नदेशत्वप्राप्तिश्चित्रपटाद्यवयविन एकत्वात्तत्रापि भिन्नदेशत्वाऽसिद्धेः । पू कथंचित्पक्षस्तु दृष्टान्ते दार्टान्तिके च स्याद्वादिनां न दुर्लभः।
अन्यत्र भी इसी प्रकार देखा जाता है। कई रंगोसे रंगा हआ जो चित्र वस्त्र होता है उसमें जो नीलापन दीखपडता है वह तो किसी दूसरी चीजके संबंधसे तथा अन्य जो रंग होते है वे अपनी अपनी कुछ जुदी जुदीही सामग्रियोंसे होते है। इसी प्रकार काला पीला इन दो वर्णोंका जो रंगा हुआ वस्त्र होता है उसमें भी जो जुदे जुदे रंग है वे अपनी अपनी जुदी सामग्रियोंसें ही
हुए है। भावार्थ-यद्यपि एक ही आधारमें अपनी अपनी अपेक्षा तो संपूर्ण रंग विद्यमान है परंतु अन्य रंगोंकी अपेक्षा अन्य
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