________________
है अर्थात् आचार्य इसीके आधारपर एकान्तवादका खंडन करेंगे। क्योंकि, सब ही पदार्थ द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षासे नित्य है और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे अनित्य है। उनमें प्रथम ही परवादियोंने जिस दीपकको एकान्त अनित्य माना है, उसी दीपक || नित्य तथा अनित्यरूप दोनों धर्म सिद्ध करनेके लिये कुछ कहते है ॥
तथा हि-प्रदीपपर्यायापन्नास्तैजसाः परमाणवः स्वरसतस्तैलक्षयाद्वाताभिघाताद्वा ज्योतिःपर्यायं परित्यज्य तमोरूपं पर्यायान्तरमासादयन्तोऽपि नैकान्तेनानित्याः। पुद्गलद्रव्यरूपतयाऽवस्थितत्वात्तेपाम् । नह्येतावतैवा) नित्यत्वं यावता पूर्वपर्यायस्य विनाशः, उत्तरपर्यायस्य चोत्पादः । न खलु मृद्रव्यं स्थासककोशकुशूलशिवकघटोद्यवस्थान्तराण्यापद्यमानमप्येकान्ततो विनष्टम् । तेषु मृद्रव्यानुगमस्याऽवालगोपालं प्रतीतत्वात् । न च तमसः पौगलिकत्वमसिद्धम् । चाक्षुषत्वान्यथानुपपत्तेः । प्रदीपालोकवत् ॥
सो ही दिखलाते है कि, दीपककी पर्यायको प्राप्त हुए जो तेजके परमाणु है, वे यद्यपि स्वभावसे, तैलके न रहनेसे अथवा पवनकी टक्कर लगनेसे, अपने प्रकाशरूप पर्यायको छोड़कर तम ( अंधकार ) रूप जो दूसरा पर्याय है, उसको प्राप्त होते है, तथापि एकान्तसे अनित्य नहीं हैं। क्योंकि, वे तेजके परमाणु पुद्गलद्रव्यरूपतासे, उस तमरूप पर्यायमें भी विद्यमान है । और
पूर्व पर्यायका नाश तथा उत्तर पर्यायका जो उत्पन्न होना है, इतने ही से दीपकमें अनित्यता नहीं हो सकती है । क्योंकि, मृत्तिका Ma( मिट्टी) द्रव्य यद्यपि स्थासक (चाकपर धरा हुआ मिट्टीका पिंड), कोश ( उस मिट्टीके पिडका बढ़ा हुआ आकार), कुशल
(उस बढ़े हुए आकार पर हात फेरनेसे उत्पन्न हुआ एक प्रकारका आकार), शिवक ( कपाल), घट (घड़ा) इत्यादि रूप भिन्न २ अवस्थाओंको प्राप्त होता है, तथापि सर्वथा नष्ट नहीं होता है । क्योंकि, उन स्थासक आदि पर्यायोंमें बालकसे लेकर गोपाल ( ग्वालिये ) तक सबोंके मृत्तिकाद्रव्यकी प्रतीति होती है अर्थात् सभी स्थासक आदिमें मृत्तिकाद्रव्यको स्वीकार करते है।
और तमके पौद्गलिकत्व (पुद्गलका पर्यायपना ) असिद्ध नहीं है। क्योंकि, जैसे प्रदीपका प्रकाश पौद्गलिक होनेसे चाक्षुप (नेत्रोंका विषय ) है, उसी प्रकार तम भी पौद्गलिक होनेसे ही चाक्षुष है । और यदि तुम तमको पौद्गलिक न मानो तो वह चाक्षुष भी नहीं हो सकता है । इसलिये सिद्ध हुआ कि तम पौद्गलिक है।
१ स्वभावतः ।