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साद्धादम. ॥१७५॥
लिखा है कि "अजोंसे यज्ञ करना चाहिये"। ऐसे ऐसे वचनोमें जहां अजशब्द आता है वहां उसका अर्थ मिथ्यादृष्टी तो बकरा धू करते है परंतु सम्यग्दृष्टी कहते है कि जो उपज नहीं सकै ऐसे तीन वर्षके पुराने जौ, धान आदिक तथा पांच वर्षवाले तिल मसूर 6 आदिक तथा सात वर्षके पुराने कांगनी सरसो आदिक धान्य अजशब्दका अर्थ है । और इसी प्रकार पीछेसे गणधर होनेवाले श्रीइन्द्रभूति आदिक विद्वान् वेद की जिन ऋचाओंके अर्थद्वारा जीवतत्त्वका निषेध करते थे उन्हीके अर्थद्वारा चोवीसवे तीर्थकर श्रीमहावीर खामीने जीवतत्त्वका मंडन किया था। उनमेंसे प्रथम ऋचा यह है कि “ विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानु विनश्यति न प्रेत्यसंज्ञास्ति".। भावार्थ-इसके दो अर्थ होसकते हैं। एक तो ऐसा होसकता है जिससे जीवतत्त्वका निषेध होजाताहै; दूसरा ऐसा होसकता है जिससे जीवतत्त्वका मंडन होजाताहै । इनमेंसे पहिला अर्थ जो इंद्रभूतिने किया था वह यह है कि विज्ञानमय आत्मा पांचो भूतोंसे ही उत्पन्न होता है और उन्हीमें विलीन होजाता है । इसलिये
परलोक कुछ नहीं है। इसीका दूसरा अर्थ श्रीवर्द्धमान खामीने ऐसा किया कि ज्ञानका समूह इन पांच भूतोंका निमित्त पाकर ५ उपजता है और उनके पर्यायोंकी पलटनके साथ साथ ही वह ज्ञान बदलजाता है और उसका नाम भी पहिला नही रहता है।
तथा स्मार्ता अपि "न मांसभक्षणे दोषो न मद्ये न च मैथुने । प्रवृत्तिरेपा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला" इति श्लोकं पठन्ति । अस्य च यथाश्रुतार्थव्याख्यानेऽसंवद्धप्रलाप एव । यस्मिन् हि अनुष्ठीयमाने दोषो नास्त्येव तस्मान्निवृत्तिः कथमिव महाफला भविष्यति? इज्याध्ययनदानादेरपि निवृत्तिप्रसङ्गात् । तस्मादन्यदैदंपर्यमस्य श्लोकस्य। तथा हि । न मांसभक्षणे कृतेऽदोषोऽपि तु दोष एव । एवं मद्यमैथुनयोरपि । कथं नादोप इत्याह-यतः प्रवृत्तिरेषा भूतानाम् । प्रवर्तन्त उत्पद्यन्तेऽस्यामिति प्रवृत्तिरुत्पत्तिस्थानं भूतानां जीवानाम् । तत्तज्जीवसंसक्तिहेतुरित्यर्थः। । इसी प्रकार स्मृतिकार कहते है कि "न मांसभक्षणे दोषो न मद्ये न च मैथुने । प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला"। । इसका प्रगट अर्थ यह होता है कि मांसभक्षणमें दोष नहीं है और न मद्य पीनेमें न मैथुन करनेमें । क्योंकि प्राणियोंकी प्रवृत्ति
ही इस तरफ चली आती है। परंतु इसके त्यागनेसे अवश्य महान् फल होता है । परंतु ऐसा अर्थ करनेसे ऐसा समझा जाता है कि, धू । ऐसा कहनेवाला कोई विना विचारे ही बकनेवाला है । क्योंकि जिसकी प्रवृत्ति करनेसे कुछ पाप नहीं होता उसके त्यागनेसे ।
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र प्रवृत्तिा भूतानाम् । प्रस्तान
दीपो न मये न च मैग्ने । प्राचिरेका नाना व्यकि, प्राधियोंकी इति ।