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साहादम
रा.जै.शा
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प्रतिक्षणोत्पादविनाशयोगिस्थिरैकमध्यक्षमपीक्षमाणः।
जिन! त्वदाज्ञामवमन्यते यः स वातकी नाथ पिशाचकी वा ॥२१॥ मूलार्थ-हे जिनेंद्र प्रभो ! प्रतिसमय उत्पन्न होते तथा नष्ट होते तथा द्रव्यत्वकी अपेक्षा सदा स्थिर रहते हुए वस्तुओंको प्रत्यक्ष देखता हुआ भी जो इसी प्रकारका जिसमें उपदेश किया गया है ऐसे आपके शासनको अंगीकार नहीं करता है वह या तो पागल है अथवा किसी भूतने उसको घेरलिया है। ___ व्याख्या-प्रतिक्षणं प्रतिसमयमुत्पादेनोत्तराकारस्वीकाररूपेण विनाशेन च पूर्वाकारपरिहारलक्षणेन युज्यत इत्येवंशीलं प्रतिक्षणोत्पादविनाशयोगि । किं तत् ? स्थिरैकं कर्मतापन्नम् । स्थिरमुत्पादविनाशयोरनुयायित्वात् त्रिकालवर्ति यदेकं द्रव्यं स्थिरैकम् । एकशब्दोत्र साधारणवाची। उत्पादे विनाशे च तत्साधारणमन्वयिद्रव्यत्वात् ।। यथा चैत्रमैत्रयोरेका जननी साधारणेत्यर्थः । इत्थमेव हि तयोरेकाधिकरणता; पर्यायाणां कथंचिदनेकत्वेऽपि धु तस्य कथंचिदेकत्वात्। एवं त्रयात्मकं वस्तु अध्यक्षमपीक्षमाणःप्रत्यक्षमवलोकयन्नपि हे जिन रागादिजैत्र! त्वदाज्ञा (आ सामस्त्येनानन्तधर्मविशिष्टतया ज्ञायन्तेऽवबुद्ध्यन्ते जीवादयः पदार्था यया सा आज्ञा आगमः शासनम् । धू तवाज्ञा त्वदाज्ञा तां त्वदाज्ञां) भवत्प्रणीतस्याद्वादमुद्रां यः कश्चिदविवेकी अवमन्यतेऽवजानाति (जात्यपेक्षमेकवचनमवज्ञया वा) स पुरुषपशुतकी पिशाचकी वा। वातो रोगविशेषोऽस्यास्तीति वातकी। वातकीव वातकी। वातूल इत्यर्थः। एवं पिशाचकीव पिशाचकी। भूताविष्ट इत्यर्थः। अत्र वाशब्दः समुच्चयार्थ उपमानार्थो वा । स पुरुपापशदो वासकिपिशाचकिभ्यामधिरोहति तुलामित्यर्थः।। ___व्याख्यार्थ-प्रत्येक समय उत्पादमें अर्थात् उत्तर कालवी पर्यायके धारण करनेमें तथा विनाशमें अर्थात् पहिले पर्यायके विनाश
होने में जो संयुक्त रहता हो उसको प्रतिक्षणोत्पादविनाशयोगि कहते हैं। ऐसी क्या चीज ? स्थिरैक । अर्थात् स्थिर नाम सदा उत्पत्ति धु और विनाशोमें साथ रहनेवाला ऐसा जो एक अर्थात् द्रव्य है वह स्थिरैक कहाता है। यहांपर एक शब्दका अर्थ साधारण है । ५
उत्पत्ति तथा विनाशोमें द्रव्य सदा एक ही बना रहता है । जैसे चैत्र और मैत्रकी एक ही माता है अर्थात् जो माता चैत्रकी है
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