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Malवन्धनविच्छेदपर्यायः । मोक्षश्च तस्यैव घटते यो वद्धः । क्षणक्षयवादे त्वन्यः क्षणो बद्धः क्षणान्तरस्य च मुक्तिरिति
मोक्षाऽभावः प्राप्नोति । १२।। KI और बौद्ध जो मोक्षका खरूप ऐसा मानते हैं कि सपूर्ण वासनाओंका नाश होजानेपर नष्ट होगया है विपयोंका मलिन संबंध
जिसमें ऐसी विशुद्ध ज्ञानकी उत्पत्ति ही मोक्ष है सो यह खरूप बनता नही है । क्योंकि जब कारण ही नही हो तो कार्य कैसे उपजसकता है ? भावनाओंके संचयको उसका कारण माना है सो वह कोई अविनाशी एक आश्रयरूप न होनेसे कुछ विशेषता पैदा नही करसकता तथा वह प्रत्येक नवीन नवीन ही उत्पन्न होता है तथा निरन्वय ही नष्ट होजाता है तथा जिस प्रकार गगनका कितना ही उहंगन क्यों न किया जाय परंतु अंत नही आता उसी प्रकार वह भी कितनी ही बार क्यों न उपज |विनश ले परंतु उसकी उत्पत्तिका अंत नहीं आता ऐसे उस ज्ञानक्षणसे किसी भी स्पष्ट सचे ज्ञानकी उत्पत्ति नही होसकती है इसलिये ऐसा शुद्ध ज्ञान होना असंभव ही है। भावार्थ-जब शुद्ध ज्ञानकी उत्पत्ति ही संभव नहीं है तो मोक्ष कहांसे हो? क्योंकि शुद्ध ज्ञानकी| उत्पत्तिका ही नाम मोक्ष है। और जो संसारदशामें होनेवाले मलिन ज्ञानक्षण है उनसे केवल मलिन ज्ञानक्षणोकी ही उत्पत्ति होसकती है; शुद्ध ज्ञानक्षणोकी उत्पत्ति होना संभव नहीं है । अर्थात् अशुद्ध ज्ञान क्षण उत्पन्न करनेमात्रकी उनमें खाभाविक शक्ति विद्यमान है। क्योंकि, प्रत्येक बीज अपने सजातीय फलको ही पैदा करसकता है; विजातीयको कभी नही करसकता है। और जब
उसका सदा मलिन ज्ञानक्षण उपजाना ही खभाव है तो अकस्मात् उसका नाश होजाना भी संभव नहीं है। भावार्थ-समल ज्ञानलक्षणोका सर्वथा नाश होकर नबीन शुद्ध ज्ञानकी उत्पत्तिरूप मोक्षका होना असंभव ही है। और भी एक दोष यह है कि संसारदशामें होनेवाले मलिन ज्ञानक्षण तो सर्वथा अपने खरूपसे नष्ट होचुके तथा पीछेसे शुद्ध ज्ञानक्षणकी जो उत्पत्ति है वह निर्मूल ही है और पूर्ववर्ती तथा इन शुद्ध ज्ञानक्षणोमें रहनेवाला कोई एक संतान संभव नहीं है । जब संसारदशाके मलिन ज्ञानक्षणोका|
नक्षणरूप मोक्षदशाके साथ कोई संबंध ही नही रहा तो संसारीक अवस्था तो किसी अन्यकी ही थी तथा मोक्ष किसी IN अन्यका ही हुआ ऐसा मानना पड़ेगा। यथार्थमें मोक्ष उसीका होना चाहिये जिसकी पहिले संसारीक अवस्था रही हो।
क्योंकि, बंधनसे छूटनेका नाम मोक्ष है इसलिये जो बंधता है वही छूटसकता है जिसका कभी बंध ही नहीं हुआ वह छूटेगा किससे? और जब संसारदशावाला जो बंधा है वह तो छूटता ही नही है तो वह प्रयत्न भी किसलिये करेगा? जो कोई प्रयत्न