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विद्यमान रहता है तो भी ज्ञान तभी होसकता है जब संपूर्ण कारण एकत्रित होजाते है । और जो यह कहा कि इस आत्माको जतानेवाला एक भी ऐसा हेतु नही मिलता है जो आत्माके विना कही रह न सकता हो सो यह कहना भी मिथ्या है। क्योंकि, ऐसे अनेक हेतु मिलते है जो आत्माके अतिरिक्त कही रह ही नहीं सकते। all तथा हि । रूपाद्युपलब्धिः सकर्तृका क्रियात्वात् । छिदिक्रियावत् । यश्चास्याः कर्त्ता स आत्मा । न चात्र चक्षु
रादीनां कर्तृत्वं; तेषां कुठारादिवत् करणत्वेनाऽस्वतन्त्रत्वात् । करणत्वं चैषां पौगलिकत्वेनाऽचेतनत्वात् परप्रेर्यजात्वात् प्रयोक्तृव्यापारनिरपेक्षप्रवृत्त्यभावात् । यदीन्द्रियाणामेव कर्तृत्वं स्यात्तदा तेषु विनष्टेषु पूर्वाऽनुभूतार्थस्मृ
तेर्मया दृष्टं स्पृष्टं घ्रातमास्वादितं श्रुतमिति प्रत्ययानामेककर्तृकत्वप्रतिपत्तेश्च कुतः संभवः? किं चेन्द्रियाणां स्वस्वविषयनियतत्वेन रूपरसयोः साहचर्यप्रतीतौ न सामर्थ्यम् । अस्ति च तथाविधफलादे रूपग्रहणानन्तरं तत्सहचरितरसानुस्मरणं दन्तोदकसंप्लवाऽन्यथानुपपत्तेः । तस्मादुभयोर्गवाक्षयोरन्तर्गतः प्रेक्षक इव द्वाभ्यामिन्द्रियाभ्यां
रूपरसयोर्दशी कश्चिदेकोऽनुमीयते । तस्मात्करणान्येतानि । यश्चैषां व्यापारयिता स आत्मा। lal अब उन हेतुओंको दिखाते है । रूपादिक गुणोका जो नेत्रादि द्वारा प्रत्यक्ष होता है वह प्रत्यक्ष कर्ता के बिना नही होसकता
है। क्योंकि वह प्रत्यक्ष एक प्रकारकी क्रिया है। जैसे कुल्हाडीसे काटनेरूप जो क्रिया है वह बिना किसी कर्ताके नही होसकती है। जो इस देखने जानने आदिक क्रियाओंका कर्ता है उसीका नाम आत्मा है। और जिस प्रकार कुल्हाडीसे काटनेमे कुल्हाडी खय काटनेवाली नही है उसी प्रकार इंद्रियोंकी सहायतासे देखने जाननेमें भी इंद्रिय स्वयं देखने जाननेवाली नही होसकती किन्तु देखने जाननेवाला कोई और ही होना चाहिये। क्योंकि इन्द्रिया जैसे काटनेमें कुल्हाडी करणरूप होनेसे किसीके| परतन्त्र ही रहती है तैसे परतंत्र हैं। करण उसको कहते है जो खयं जडरूप होकर किसीकी प्रेरणासे ही कार्य करता हो किंतु जब प्रेरणा | करनेवाला न हो तब स्वतंत्र कुछ नहीं करसकता हो । यह करणका स्वरूप इंद्रियोंमें भी घटता है इसलिये इद्रियां भी करण ही है।.. कर्ता अपना कार्य करनेमें खतंत्र होता है; जब चाहता है तव प्रवर्तता है और जब नहीं चाहता है तब नही प्रवर्तता है । यह
कर्ताका खरूप इंद्रियोंमें नही घटता है इसलिये इंद्रियां खयं कर्ता नही हैं । यदि इंद्रियां ही खयं कर्ता हों तो जिस इंद्रियसे जिस II किसी वस्तुका अनुभव पहिले किया था उस वस्तुके अनुभवका स्मरण तभीतक होना चाहिये जबतक वह इंद्रिय बनी रही हो।।