________________
स्थाद्वादम. ज्ञान खसवेदनधर्म द्वारा जताता है उसका ऐसा उदाहरण कहा है कि नीलादि ज्ञान जिसको हुआ है वह मै ( ज्ञान ) ही हूं।
राजै.शा इस प्रकार जो प्रथम ही बाह्य पदार्थको जतानेवाला ' यह नीलादिक बाह्य पदार्थ है। ऐसा प्रथम ज्ञान तथा 'नीलादिकका ज्ञान ॥१४१॥
जिसको हुआ है वह मै ही हू' ऐसा दूसरा ज्ञान एक साथ ही चेतनामें परिणमते है, इनकी उत्पत्तिमें कालका अंतर नहीं है। इसलिये एकसाथ ही मिलना जिनका होता है वे परस्पर भिन्न नही होते ऐसा जो बौद्धने कहा था वह असत्य प्रतीत होता है। क्योंकि, ऊपर दिखाये हुए उदाहरणमें दोनो ज्ञानोका ग्रहण होना तो साथ ही है परंतु वे दोनो ज्ञान एक नहीं है किंतु जुदे जुदे
है। इस प्रकार अभेद सिद्ध करने में बौद्धने जो 'एक साथ होना' ऐसा हेतु कहा था वह हेतु अभेदसे विपरीत भेदमें भी रहता . हो हुआ प्रतीत होनेसे संदेहसहित है । और इसीलिये इसको संदिग्धानकान्तिक कहा है। LG असिद्धश्च सहोपलम्भनियमो; नीलमेतदिति बहिर्मुखतयाऽर्थेऽनुभूयमाने तदानीमेवान्तरस्य नीलानुभवस्या
ननुभवात् । इति कथं प्रत्यक्षस्यानुमानेन ज्ञानार्थयोरभेदसिद्ध्या भ्रान्तत्वम् ? अपि च प्रत्यक्षस्य भ्रान्तत्वेनाsवाधितविषयत्वादनुमानस्यात्मलाभो, लब्धात्मके चानुमाने प्रत्यक्षस्य भ्रान्तत्वमित्यन्योन्याश्रयदोषोपि दुर्निवारः। अर्थाभावे च नियतदेशाधिकरणा प्रतीतिः कुतः? न हि तत्र विवक्षितदेशेऽयमारोपयितव्यो नान्यत्रेत्यस्ति नियमहेतुः। वासनानियमात्तदारोपनियम इति चेन्न; तस्या अपि तद्देशनियमकारणाभावात् । सति ह्यर्थसद्भावे यदेशो है' ऽथेस्तद्देशोऽनुभवस्तद्देशा च तत्पूर्विका वासना। बाह्यार्थाभावे तु तस्याः किंकृतो देशनियमः ? अथास्ति ।। तावदारोपनियमः। न च कारणविशेषमन्तरेण कार्यविशेषो घटते । बाह्यश्चार्थो नास्ति । तेन वासनानामेव वैचिव्यं तत्र हेतुरिति चेत्तद्वासनावैचित्र्यं बोधाकारादन्यदनन्यद्वा? अनन्यच्चेद्वोधाकारस्यैकत्वात्कस्तासां परस्परतो विशेषः? अन्यच्चेदर्थे कः प्रद्वेषो? येन सर्वलोकप्रतीतिरपन्हूयते । तदेवं सिद्धो ज्ञानार्थयोर्भेदः। Ko 'ज्ञान तथा पदार्थकी एक साथ उपलब्धि होना ( मिलना ) यह हेतु असिद्ध भी है। क्योंकि; जब यह नीलादि है ऐसा बाह्य पदार्थ भासता है तभी नीलादिकका जो अंतरंगमें ज्ञान उत्पन्न हुआ है उसका अनुभव नही होता है। इन दोनों ज्ञानोकी ॥१४॥ उत्पत्तिमें कालका अंतर पड़ता है। इसलिये ज्ञान और पदार्थमें परस्परका भेद जो प्रत्यक्षसे सिद्ध है उसको यह ऊपर दिखाया है। हुआ बौद्धका अनुमान भ्रमात्मक नहीं ठहरा सकता है। और भी दूसरा दोष यह है कि भेददर्शक जो प्रत्यक्ष है वह जब भ्रमात्मक ('