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कदाचित् कहो कि हम जो 'अपने आप ' ऐसा भेदरूप शब्द बोलते हैं वह भी भ्रमज्ञानके वश बोलते है तो हम पूछते है कि पदार्थ परस्पर भिन्नरूप जब प्रत्यक्षसे दीखते हैं तो परस्परका भेद झूठा क्यों है ? यदि कहो कि भेद दिखानेवाला प्रत्यक्ष भ्रमात्मक है क्योंकि; अनुमानसे अभेद सिद्ध होता है तो हम पूछते हैं कि वह कोनसा अनुमान है ? इस प्रश्नके उत्तर में बौद्ध अभेद साघनेवाले अनुमानको दिखाता है कि जो नियमसे सदा जिसके साथ ही मिलता है वह उससे भिन्न नही कहा जासकता है । जिस प्रकार असली आकाशगामी चंद्रमाके होते हुए ही जलमें पड़ा हुआ चंद्रमाका प्रतिबिंब दीखता है; जब असली चंद्रमा नही होता है तब जलमें उसका प्रतिबिंब भी नहीं दीखता है इसलिये असली चंद्रमाके अतिरिक्त वह प्रतिबिंब कोई भिन्न वस्तु नही है । इसी प्रकार जहां जिस समय जैसा पदार्थ दीखता है वहां उस समय ज्ञान भी तैसा ही प्रतीत होता है इसलिये पदार्थ भी ज्ञानके अतिरिक्त कोई भिन्न वस्तु नही है । यह अनुमान व्यापकानुपलब्धिनामक है । भावार्थ - जहां साध्यसे विपरीत धर्मके साथ जो कोई धर्म व्याप्त होसकै ऐसे धर्मकी जो उपलब्धि नही होना है उसीका नाम व्यापकानुपलब्धि है । जैसे यहां पर ज्ञान तथा विषयरूप पदार्थका अभेद साध्य है । ज्ञान तथा पदार्थका जो भेद मानना है वह साध्यसे विपरीत धर्म है । | उस विपरीत धर्मकी सिद्धि तभी होसकती है जब अभेदका साधक ' ज्ञान तथा पदार्थका साथ साथ मिलना ' ऐसा हेतु जो बौद्धने कहा है उससे विपरीत ' ज्ञान तथा पदार्थका साथ साथ न मिलना ' ऐसा हेतु मिलसकै । परंतु ऐसा हेतु मिलता ही नही है । क्योंकि; जुदे जुदे रहनेवाले नीले पीले आदिक धर्मोका एकसाथ मिलना संभव नही है । कभी नीलरूप ही मिलता है। और कभी पीतादिरूप ही । अब यहांपर सिद्धान्ती कहते हैं कि इस अनुमानसे बौद्ध जो अभेद सिद्ध करता है वह सिद्ध करना सर्वथा अयुक्त है । क्योंकि इस अनुमानका हेतु सच्चा हेतु नही किंतु संदिग्धानैकान्तिकनामक हेत्वाभास है । भावार्थ - संदिग्धानैकान्तिकनामक हेत्वाभास उस हेतुको कहते है जिसका रहना साध्यसे विरुद्ध धर्मके साथ भी संभव होसकै । सो ही | दिखाते है । -ज्ञान निजका तथा अन्य पदार्थोंका निश्चय कराता है सो अन्यका निश्चय कराना जो ज्ञानमें धर्म है उस धर्मके आश्रयसे तो ज्ञान अन्य बाह्य नीलादिकोका निश्चय कराता है और जो आत्मामें निजका निश्चय कराने रूप धर्म है उसकी | अपेक्षासे उस नीलादि ज्ञानरूप परिणत हुई बुद्धिको अपने आपमें निश्चय कराता है । बुद्धि नीलादिज्ञानमय परिणत हुई तभी कही जाती है जब यह नीलादि है इस प्रकार बाह्य पदार्थका प्रथम ही ज्ञान हुआ हो । नीलादिज्ञानमय परिणत हुई बुद्धिको जो
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