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स्याद्वादमं.
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ग्विकल्पे किमसद्रूपं सद्रूपमुभयरूपं वा ते कार्यं कुर्युः ? असद्रूपं चेच्छशविषाणादेरपि किं न करणम् ? सद्रूपं चेत्सतोऽपि करणेऽनवस्था । तृतीयभेदस्तु प्राग्वद्विरोधदुर्गन्धः । तन्नाणुरूपोऽर्थः सर्वथा घटते ।
चिरस्थायी मानकर सहायक माननेमें और भी अधिक दोष ये आते है कि उत्पत्तिके अनंतर कितने ही कालतक ठहरते हुए भी परमाणु क्या प्रयोजनीभूत क्रियाओंसे परामुख होकर ठहरते है अथवा कुछ आवश्यकीय क्रियाओं को करते हुए ठहरते है ? यदि कुछ भी क्रिया न करते हुए ठहरे माने जांय तो यह ठहरना मानना आकाशके पुष्पसमान है । अर्थात् सच्चा ठहरना वही है जिससे कुछ भी प्रयोजनरूप कार्य होता रहै। जिसके द्वारा कुछ होता ही नही है उसके ठहरनेमें प्रमाण ही क्या है ? क्योंकि; जो विद्यमान होता है वह अवश्य कुछ नकुछ किया ही करता है । यदि कुछ करते हुए ही स्थित माने जाय तो भी क्या वह कार्य असत्रूप है वा सत्रूप है अथवा सत्असत् दोनोरूप है जिसको वे करते हैं ? यदि वह कार्य असतरूप है जिसको वे चिरस्थायी होकर करते हैं तो वे गधेके सींगोको भी क्यों नही बनाते ? क्योंकि; गधेके सींग भी ठीक वैसे ही असत्रूप है । यदि सत्रूपको करते है तो जो कार्य उत्पन्न होजाता है उसको भी करते ही रहेंगे। क्योंकि; सर्वथा जो सत् होता है उसीको वे करते हैं । इस प्रकार किये हुएको फिर भी करते करते विराम न मिलसकैगा । यदि सत् असत् दोनोरूपके कार्यको करते हुए माने जांय तो जैसा दोष प्रथम दिखा चुके हैं उसी प्रकारका यहां भी संभव है । अर्थात् जो सत्पक्ष तथा असत्पक्ष माननेमें दोष संभवते है वे सब यहां सत्भसत् दोनोरूप तीसरा पक्ष मानने में भी संभवते है । इसलिये परमाणुरूप बाह्य पदार्थ किसी प्रकार भी ६ संभव नहीं है ।
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नापि स्थूलावयविरूपः । एकपरमाण्वसिद्धौ कथमनेकतत्सिद्धिः ? तदभावे च तत्प्रचयरूपः स्थूलावयवी वाङमा - त्रम् । किं चायमनेकावयवाधार इष्यते । ते चावयवा यदि विरोधिनस्तर्हि नैकः स्थूलावयवी; विरुद्धधर्माध्यासात् । अविरोधिनश्चेत्प्रतीतिबाधःः एकस्मिन्नेव स्थूलावयविनि चलाचलरक्तारकाssवृतानावृता दिविरुद्धावयवानामुपलब्धेः ।
अब जो स्थूल पदार्थो को ही बाह्य पदार्थ मानते हैं उनका विचार करते हैं । स्थूलरूप बाह्य पदार्थ मानना भी युक्तिसंगत नही है । क्योंकि; अनेक परमाणुओंके समूहका नाम स्थूल अवयवी है सो यदि परमाणु ही सिद्ध नही है तो उन अनेक
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रा. जै.शा.