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साद्वादमं. ॥१२९॥
निश्चय करते है कि संपूर्ण सत्पदार्थ क्षणिक है। क्योंकि; सर्व ही घटादि वस्तु मूसल आदिक ऊपर गिरपडनेपर नष्ट होते हुए राज दीखते है। जिस खरूपसे अंतअवस्थामें घटादि वस्तु नष्ट होते है वही स्वरूप उत्पन्न होते समय भी पदार्थमें विद्यमान है इसलिये उत्पन्न होनेके अनंतर ही प्रत्येक पदार्थ नष्ट होजाना चाहिये । इस प्रकार सभी वस्तुओंमें क्षणध्वसीपना सिद्ध होता है। शङ्का–यदि अपनी उत्पत्तिके कारणभूत सहायकोंके द्वारा प्रत्येक पदार्थ उत्पन्न ही ऐसा होता हो जो उत्पत्तिके अनंतर कुछ काल ठहरकर नष्ट होजाता हो तो क्षणध्वंसीपना खभाव क्यों माने? ऐसा कहना ठीक नहीं है। क्योंकि, यदि वस्तुका खभाव क्षणध्वंसी न मानाजायगा तो मुद्रादिक (मूसल) पड़नेपर भी उस पदार्थका विद्यमान रहनेका खभाव वदल न सकेगा और इसीलिये उसको मूसल | वगैरह ऊपर गिरपड़नेपर भी जैसाका तैसा ही विद्यमान रहना चाहिये नष्ट न होना चाहिये। इस प्रकार यह सब नहीं देनेकी इच्छा al रखनेवाले वनियेका पत्रमें लिखे हुए ऋणको प्रत्येक दिवस आगामी कलदिन देनेका वायदा करना जैसा ही न्याय (कहावत ) । है । अर्थात् जिस समय किसी पदार्थका किसी कारणसे नाश होगा तभी हम पूछ सकते है कि यह पदार्थ नाशके कारण मिलनेपर | भी अभी नष्ट क्यों हुआ क्योंकि, अभी इसके नष्ट होनेका समय नहीं था इसलिये जैसाका तैसा ही ठहरारहना चाहिये था। इस दोषके भयसे यदि दो क्षण ठहरनेका स्वभाव भी माना जाय तो भी उत्पत्तिके वाद प्रथम समयके समान दूसरे समयमें भी दो क्षण ठहरनेका स्वभाव विद्यमान रहनेसे और भी आगे दो क्षणतक ठहरना चाहिये । इसीप्रकार फिर तीसरे आदिक क्षणों में भी दो क्षण ठहरनेका स्वभाव विद्यमान रहनेसे कभी नष्ट न होना चाहिये ।। स्यादेतत् "स्थावरमेव तत् स्वहेतोर्जातं परं वलेन विरोधकेन मुद्गरादिना विनाश्यते" इति तदसत् । कथं पुनरेतद् घटिष्यते "नच तद्विनश्यति स्थावरत्वाद्विनाशश्च तस्य विरोधिना वलेन क्रियत" इति? न ह्येतत्संभवति जी वति च देवदत्तो मरणं चास्य भवतीति । अथ विनश्यति तर्हि कथमविनश्वरं तद्वस्तु हेतोर्जातमिति ? न हि | घियते चाऽमरणधर्मा चेति युज्यते वक्तुम्। तस्मादविनश्वरत्वे कदाचिदपि नाशाऽयोगाद् दृष्टत्वाच नाशस्य नश्वव रमेव तद्वस्तु स्वहेतोरुपजातमङ्गीकर्त्तव्यम्। तस्मादुत्पन्नमात्रमेव तद्विनश्यति । तथा च क्षणक्षयित्वं सिद्धं भवति । ५ ॥१२९॥ ___ यदि कदाचित् ऐसा कहों कि पदार्थ तो अपने उत्पत्तिके कारणोसे ठहरनेका खभाव लेकर ही उत्पन्न होता है परंतु उसके विरोधी मूसल आदिकसे बलात्कार नष्ट किया जाता है परंतु यह भी असत्य है । क्योंकि ऐसा कहनेसे परस्पर विरुद्ध ये दो वचन