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________________ स्थाद्वादमं. ॥१२६॥ प्रमाणफलमधिगमरूपत्वात्" । उभयत्रेति प्रत्यक्षेऽनुमाने च, तदेव ज्ञानं प्रत्यक्षानुमानलक्षणं फलं कार्यम कुतोऽधिगमरूपत्वादिति परिच्छेदरूपत्वात् । तथा हि । परिच्छेदरूपमेव ज्ञानमुत्पद्यते । न च परिच्छेदादृतेऽन्यज् ज्ञानफलम्; अभिन्नाधिकरणत्वात्। इति सर्वथा न प्रत्यक्षानुमानाभ्यां भिन्नं फलमस्तीति। एतच्च न समीचीनं यतो यद्यस्मादेकान्तेनाऽभिन्नं तत्तेन सहैवोत्पद्यते । यथा घटेन घटत्वम् । तैश्च प्रमाणफलयोः कार्यकारणभावोऽभ्युपगम्यते । प्रमाणं कारणं फलं कार्यमिति । स चैकान्ताऽभेदे न घटते । न हि युगपदुत्पद्यमानयोस्तयोः सव्येतरगोविषाणयोरिव कार्यकारणभावो युक्तः, नियतप्राक्कालभावित्वात्कारणस्य; नियतोत्तरकालभावित्वात्कार्यस्य । एतदेवाह "न तुल्यकालः फलहेतुभावः" इति । फलं कार्य हेतुः कारणम् । तयोर्भावः स्वरूपं कार्यकारणभावः। स तुल्यकालः समानकालो न युज्यत इत्यर्थः। व्याख्यार्थ-बुद्धमतावलम्बी प्रमाणसे उत्पन्न हुए फलरूप ज्ञानको प्रमाणरूप ज्ञानसे सर्वथा अभिन्न मानते है। ऐसा ही उनके सिद्धान्तमें कहा है "दोनो प्रकार के (प्रत्यक्ष तथा अनुमानरूप) प्रमाणज्ञानमें ही फलरूप ( कार्यरूप) प्रत्यक्ष तथा अनुमानज्ञान भी गर्भित है । क्योंकि, ज्ञान जितना होता है वह सर्व अधिगम ( परिच्छेदरूप) अर्थात् फलरूप ही होता है" । इसी अभिप्रायको अनुमानद्वारा दिखाते है । ज्ञान जितना उपजता है वह सर्व परिच्छेदरूप अर्थात् फलरूप ही उपजता है । परिच्छेदरूपके सिवाय दूसरा कोई ज्ञानका फल है ही नहीं। क्योंकि, दूसरा जो कुछ फलरूप कल्पना किया जायगा वह सभी प्रमाणसे भिन्न स्था नमे रहनेवाला सिद्ध होगा । किंतु कारण तथा कार्यका आधार होना एक ही चाहिये । इस प्रकार प्रमाणरूप प्रत्यक्ष तथा अनुॐ मान ज्ञानोसे इसके फलरूप ( कार्यरूप ) प्रत्यक्ष तथा अनुमान ज्ञान किसी प्रकार भिन्न सिद्ध नही होते । इस प्रकार प्रमाणके फलरूप ज्ञानको प्रमाणज्ञानसे सर्वथा अभेदरूप मानना बौद्धोंका मत है सो ठीक नहीं है । क्योंकि, जो जिससे सर्वथा अभिन्न ७ के होता है वह उसके साथ ही उत्पन्न होता है। जैसे घट और घटपना अर्थात् घटमें रहनेवाले धर्म । ये दोनो एक ही है इसलिये * साथ ही उपजते है । और बौद्धोंने प्रमाण और प्रमाणके फलमें कार्यकारणरूप संबंध भी माना है। प्रमाण कारण है और प्रमाणका फल कार्य । यह कार्यकारणभाव सबंध भी प्रमाण तथा प्रमाणके फलको सर्वथा एकरूप माननेपर सिद्ध नही होसकता है। क्योंकि, दक्षिण (सीधे ) और वाम (वाये ) सीगके समान एकसाथ उपजनेवाले प्रमाण और प्रमाणके फलमें कार्यकारणपना किस है। ॥१२६॥
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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