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ननूक्तमचेतनापि बुद्धिश्चिच्छत्तिसान्निध्याच्चेतनावतीवावभासते इति । सत्यमुक्तम् । अयुक्तं तूक्तम् । न हि चैतन्यवति पुरुषादौ प्रतिसंक्रान्ते दर्पणस्य चैतन्यापत्तिः; चैतन्याचैतन्ययोरपरावर्तिस्वभावत्वेन शक्रेणाप्यन्यथाकर्तुमशक्यत्वात् । किं चाचेतनापि चेतनावतीव प्रतिभासते इति इवशब्देनारोपो ध्वन्यते । न चारोपोर्थक्रियासमर्थः । न खल्वतिकोपनत्वादिना समारोपिताग्नित्वो माणवकः कदाचिदपि मुख्याग्निसाध्यां दाहपाकाद्यर्थक्रियां कर्तुमीश्वरः । इति चिच्छक्तेरेव विषयाध्यवसायो घटते; न जडरूपाया बुद्धेरिति । अत एव धर्माद्यष्टरूपतापि तस्या वाङ्मात्रमेव धर्मादीनामात्मधर्मत्वात् । अत एव चाहङ्कारो न बुद्धिजन्यो युज्यते; तस्याभिमानात्मकत्वेना| त्मधर्मस्याचेतनादुत्पादायोगात् । अम्बरादीनां च शब्दादितन्मात्रजत्वं प्रतीतिपराहतत्वेनैव विहितोत्तरम् ।
शङ्का । —यह तो हम प्रथम ही कह चुके हैं कि "बुद्धि अचेतन है तो भी चेतनाके पास होनेसे चेतनाशक्तिसहितसी भासती है ।" उत्तर । - यह बात आपने कही तो अवश्य है परंतु यह कहना अनुचित है । चेतनपुरुपके प्रतिबिंब पड़ने से दर्पण कुछ चेतन नही हो सकता है । जो चेतन अथवा अचेतन है वह वेसा ही रहेगा । चेतनो तथा अचेतनोका खभाव अनादि तथा अविनाशी है । इन स्वभावोंका परिवर्तन अर्थात् चेतनको किसी प्रकार अचेतन अथवा अचेतनको चेतन कर देना इंद्रकी साम- | र्थ्यके भी अगोचर है । और भी एक दूसरा दोष यह है कि " अचेतनरूप बुद्धि चेतनासहितसी प्रतिभासती है" इस वाक्यमें। | चेतनासहितसी ऐसी समानपनेकी कल्पना मात्र है परंतु जो जो प्रयोजन असली वस्तुसे सधता है वह वह प्रयोजन कल्पित माने हुए वस्तुसे नहीं सघ सकता है । इसीलिये कल्पनामात्रके मानने से भी प्रयोजन क्या ? किसी बालकमें अत्यंत क्रोधादिक | देखकर उसका यदि अनि नाम ही रख दिया जाय तो भी क्या उसके सपर्कसे कोई जल सकता है ? जो जलाना पकानाआदि । कार्य मुख्य अग्निसे हो सकते है वे कार्य नाममात्रकी नकली असे कदापि नही हो सकते है । इसी प्रकार जो खास चेतना - शक्तिसे विषयोंका ज्ञान होने योग्य है वह क्या संबंधके वश चेतना ऐसे नकली नाममात्रको धारण करनेवाली बुद्धिसे हो सकता है ? कदापि नहीं । इसी प्रकार बुद्धिमें धर्मादिक आठ भेद मानना भी संभव नही है । क्योंकि, धर्मादिक जो है सो आत्मा के ही स्वभाव है । इसी प्रकार अहंकारका भी अचेतन बुद्धिसे उत्पन्न होना असंभव है । क्योंकि; अभिमानका नाम अहंकार है और वह अभिमान अथवा अहंकार चैतन्यसे मिला हुआ है इसलिये चेतनरूप आत्मासे ही उत्पन्न हो सकता है । चेतनरूप पदार्थकी