________________
लाभरूप फल स्वामीको ही होता है। इसी प्रकार यद्यपि भोग तथा मोक्ष है प्रकृतिके ही तो भी यह भेदभाव न होनेके कारण पुरुषके ही माने जाते है । ( यह सांख्यमतका सारांश है ) ।
तदेतदखिलमालजालम् । चिच्छक्तिश्च विषयपरिच्छेदशून्या चेति परस्परविरुद्धं वचः । चिति संज्ञाने; चेतनं चित्यते वाऽनयेति चित् । सा चेत्स्वपरपरिच्छेदात्मिका नेष्यते तदा चिच्छक्तिरेव सा न स्याद् घटवत् । न चामूर्तायाश्चिच्छक्तेर्बुद्धौ प्रतिबिम्वोदयो युक्तः, तस्य मूर्तधर्मत्वात् । न च तथा परिणाममन्तरेण प्रतिसंक्रमोपि युक्तः | कथंचित्स क्रियात्मकताव्यतिरेकेण प्रकृत्युपधानेप्यन्यथात्वानुपपत्तेः, अप्रच्युतप्राचीनरूपस्य च सुखदुःखादिभोगव्यपदेशानर्हत्वात् । तत्प्रच्यवे च प्राक्तनरूपत्यागेनोत्तररूपाध्यासिततया सक्रियत्वापत्तिः; स्फटिकादावपि तथा परिणामेनैव प्रतिबिम्बोदयसमर्थनात् । अन्यथा कथमन्धोपलादौ न प्रतिविम्वः ? तथा परिणामाभ्युपगमे च वलादायातं चिच्छक्तेः कर्तृत्वं साक्षाद्भोक्तृत्वं च ।
(अव सांख्यमतका खण्डन करते है ) । सांख्यमतीकी ये कल्पना केवल जाल है । कैसे चेतना शक्ति है तो भी विषयोंके ज्ञानसे शून्य है ये दोनों वचन परस्पर विरुद्ध है । क्योंकि, ज्ञान कराना अथवा चेताना है अर्थ जिसका ऐसे “चिति" धातुसे चेताना - | मात्र अथवा जिससे चेतना हो ऐसे अर्थ में चेतना अथवा चित् शब्द सिद्ध होता है । ऐसी यह चेतना यदि अपना तथा परका ज्ञान करानेवाली न मानी जाय तो घटादिके समान ही यह भी चेतनाशक्ति नही है ऐसा कहना पड़ेगा ( क्योंकि चेतना शब्दका अर्थ यही सिद्ध होता है कि अपना तथा परका ज्ञान करावे ) । और अमूर्तिक चेतनाशक्तिका जो बुद्धिमें प्रतिबिंब पड़ना कहा सो भी योग्य नही है । क्योंकि, प्रतिबिंब किसी मूर्तिक पदार्थका ही पड़सकता है, अमूर्तिकका प्रतिबिम्ब पड़ना संभव नही है । मूर्तिक पदार्थके सिवाय अमूर्तिक चेतनाका बुद्धिमें परिवर्तन होना भी संभव नही है । क्योंकि, कुछ नकुछ क्रिया उत्पन्न हुए विना प्रकृतिका भी परिवर्तन ( पलटना = फेरफार ) संभव नही है । यह भी क्योंकि, सुखदुःखादिकी उत्पत्ति तभी कही जासकती है जब पूर्वमें वे सुखादिक नही थे ऐसा माना जाय । क्योंकि, सुखादिकी उत्पत्ति पूर्वकी एक अवस्थाको छोडकर नवीन अवस्थाका उत्पन्न होना है। इसलिये यह नवीन उत्पत्ति तबतक कैसे संभव होगी जबतक पूर्व खरूपका त्याग न किया जायगा ? और यदि पूर्व अवस्थाका छूटना माना जाय तो पूर्व अवस्थाका छूटना तथा आगेकी नवीन अवस्थाका उपजना इसीका