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द्विशेपरूप ही होनेके कारण व्यक्तिसे किसी प्रकार ( कथंचित्) अभिन्न ही है । जैसे विशेष परिणाम । क्योंकि, जैसे दीखती हुई कोई वस्तु, अन्य वस्तुओंसे विशेषरूप भिन्न भिन्न दीखनेसे प्रतिविशेषाकाररूप प्रतिभासती है तैसे ही समान परिणामस्वरूप सामान्य धर्मके | दीखनेसे यह उसके समान है इस प्रकार भी वह प्रतिभासित होती है । क्योंकि, यह गौ उसके समान है अथवा वह इसके समान है ऐसी प्रतीति सर्वजन में प्रसिद्ध है । और यह सामान्यरूप वस्तुके खरूपसे अभिन्न है इतने मात्रसे वस्तु में सामान्यपनेका अभाव हो जाय ऐसा नहीं है । क्योंकि, रूपादिक भी वस्तुसे अभिन्न है परंतु इसलिये रूपादिकों में गुणपना न रहै ऐसा नही है । व्यक्ति तथा सामान्यके | नामादिक भिन्न भिन्न होनेकी अपेक्षा व्यक्ति तथा सामान्यमें कथंचित् भेद भी है परंतु ऐसा भेद रूपादिक तथा व्यक्तिमें भी है ही । विशेषा अपि नैकान्तेन सामान्यात्पृथग्भवितुमर्हन्तिः यतो यदि सामान्यं सर्वगतं सिद्धं भवेत्तदा तेषामसर्वंगतत्वेन ततो विरुद्धधर्माध्यासः स्यात् । न च तस्य तत्सिद्धं; प्रागुक्तयुक्त्या निराकृतत्वात्; सामान्यस्य विशेषाणां च कथंचित्परस्पराव्यतिरेकेणैकानेकरूपतया व्यवस्थितत्वात् । विशेषेभ्योऽव्यतिरिक्तत्वाद्धि सामान्यमप्यनेकमिष्यते । सामान्यात्तु विशेषाणामव्यतिरेकेण तेषामप्येकरूपता इति ।
अनेकांतवाद के कथनानुसार विशेष भी सामान्यसे जुदे नहीं रह सकते है । क्योंकि, यदि सामान्य सर्वगत सिद्ध हो तो | विशेष पदार्थ सर्वगत न होनेसे सामान्यकी अपेक्षा विरुद्धधर्मवाले माने जाय, परंतु सामान्यमें सर्वगतपना ही सिद्ध नही है । | सामान्य में सर्वगतपनेका निराकरण पहले ही युक्तिपूर्वक कर चुके है । यहां भी कुछ कहते हैं । सामान्य तथा विशेषोमें कथंचित् अभेद सिद्ध होनेसे कथंचित् एकपना तथा कथंचित् अनेकपना भी सिद्ध होता है । सामान्य स्वयं समानपनेसे एकरूप होनेपर भी विशेषरूपोंसे अभिन्न होनेके कारण अनेकरूप भी माना जाता है। ऐसे ही विशेषाकार स्वयं भिन्न भिन्न होनेपर भी सामान्य से अभिन्न होने के कारण एकरूप भी है ।
एकत्वं च सामान्यस्य संग्रहनयार्पणात्सर्वत्र विज्ञेयं; प्रमाणार्पणात्तस्य सदृशपरिणामरूपस्य विसदृशपरिणामवत् कथंचित्प्रतिव्यक्ति भेदात् । एवं चासिद्धं सामान्यविशेषयोः सर्वथा विरुद्धधर्माध्यासितत्वम् । कथंचिद्विरुद्ध धर्माध्यासितत्वं चेद्विवक्षितं तदास्मत्कक्षाप्रवेशः कथंचिद्विरुद्धधर्माध्यासस्य कथंचिद्भेदाविनाभूतत्वात् । पाथः| पावकदृष्टान्तोपि साध्यसाधनविकलः; तयोरपि कथंचिदेव विरुद्धधर्माध्यासितत्वेन भिन्नत्वेन च स्वीकरणात् ।