________________
रा.
स्थाद्वादमं.
॥७४॥
धू च्छलम । यथा अहो नु खल्वसौ ब्राह्मणो विद्याऽऽचरणसंपन्न इति ब्राह्मणस्तुतिप्रसङ्गे कश्चिद्वदति संभवति ब्राह्म-
णे विद्याऽऽचरणसंपदिति । तच्छलवादी ब्राह्मणत्वस्य हेतुतामारोप्य निराकुर्वन्नभियुड़े। यदि ब्राह्मणे विद्या ॐ चरणसंपद्भवति व्रात्येऽपि सा भवेद्वात्योऽपि ब्राह्मण एवेति । औपचारिके प्रयोगे मुख्यप्रतिषेधेन प्रत्यवस्थान
मुपचारच्छलम् । यथा मञ्चाः क्रोशन्तीत्युक्ते परः प्रत्यवतिष्ठते कथमचेतना मञ्चाः क्रोशन्ति मञ्चस्था पुरुषाः क्रोशन्तीति ।
सो इस पूर्वोक्तप्रकारसे प्रमाण आदि सोलह पदार्थोंके तत्त्वाभासपनेमें कोई भी विशेप नहीं है अर्थात् नैयायिकोंके माने हुए सोलह ही पदार्थ समानरूपतासे तत्त्वाभास है; तौ भी स्तुतिके कर्ता आचार्यमहाराजने 'मायोपदेशात्' इस पदसे उन पदार्थों से धू प्रकटमें कपटरूप नाटकके सूत्रधार अर्थात् सर्वसाधारणके देखते २ कपटको रचनेवाले ऐसे जो छल, जाति तथा निग्रहस्थान
नामक तीन पदार्थ है, उनका ही उपक्षेप (ग्रहण ) किया है । उनमें वादी जो कहै; उसके कथनमें अर्थविकल्प (दूसरे अर्थ) को उत्पन्न करके जो वादीके वचनका निषेध करना है, उसको छल कहते है । वह छल वाक्छल १, सामान्यछल २ और उपचार
छल ३, इन भेदोंसे तीन प्रकारका है। इन तीनों छलोंमेंसे वादी साधारणशब्द ( अनेक अर्थोके धारक एक शब्द ) का ॐ प्रयोग करे, तब उस कहनेवाले वादीके वांछित (चाहे हुए) अर्थसे अन्य दूसरे अर्थकी कल्पना करके जो वादीके कथनका धू
निषेध करना है, वह वाक्छल है । जैसे यह बालक नव (नये ) कम्बल ('कामला' नामक वस्त्रविशेप) को धारण करता है, इस प्रकार 'नव' शब्दसे नवीन ( नये) रूप अर्थको कहनेकी इच्छासे वादी कहै; तब प्रतिवादी नव इस शब्दसे नौ ९ की संख्यारूप अर्थको ग्रहण करके इस बालकके नव (नौ) कम्बल कहां है अर्थात् यह तो एक ही कंवलका धारक है इस
प्रकार कहकर वादीके कथनको निषेध करता है । १ । संभावनासे अत्यंत प्रसंग ( संबंध ) को धारण करनेवाले सामान्यका y कथन करनेपर उस सामान्यमें हेतुका आरोप करके अर्थात् सामान्यको हेतु बनाकर जिसमें दूसरेके कथनका निषेध किया
जाता है; वह सामान्यछल कहलाता है । जैसे आश्चर्य है कि यह ब्राह्मण विद्या और आचरणरूप संपदाको धारण करता है, इस प्रकार ब्राह्मणकी स्तुतिके प्रसंगमें अर्थात् यह ब्राह्मण ज्ञान व चारित्र सहित है इसरूपसे कोई ब्राह्मणकी प्रशंसा करता हो; 7 उसी अवसरमें कोई पुरुष कथन करे कि, ब्राह्मणमें विद्या और आचरणरूप संपदा हो सकती है। तव सामान्यछलको कहनेवाला
॥७४॥