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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [करोति ] करता है [च] फिर [जीवःअपि ] जीव पदार्थ भी [कर्मस्वभावेन ] कर्मरूप [भावेन ] भावोंसे [तादृशकः ] जैसें द्रव्यकर्म आप अपने स्वरूपकेद्वारा अपना ही कर्ता है तैसें ही आप अपने स्वरूपद्वारा आपको करता है। __ भावार्थ-जीव और पुद्गलमें अभेद पट्कारक हैं सो विशेषताकर दिखाये जाते हैं. कर्मयोग्य पुद्गलस्कंधको करता है इस कारण पुद्गलद्रव्य कर्ता है । ज्ञानावरणादि परिणाम कर्मको करते हैं इसकारण पुद्गलद्रव्य कर्मकारक भी है । कर्मभाव परिणमनको समर्थ ऐसी अपनी स्वशक्तिसे परिणमता है इस कारण वही पुद्गलद्रव्य करणकारक भी है । और अपना स्वरूप आपको ही देता है इसलिये सम्प्रदान है । आपसे आपको करता है इस प्रकार आप ही अपादान कारक है। अपने ही आधार अपने परिणामको करता है इस कारण आपही अधिकरण कारक है । इसप्रकार पुद्गलद्रव्य आप पट्कारकरूप परिणमता है अन्य द्रव्यके कर्तृत्वको निश्चयकरके नहीं चाहता है । इसप्रकार जीवद्रव्य भी अपने औदयिकादि भावोंसे पट्कारकरूप होकर परिणमता है और अन्यद्रव्यके कर्तृत्वको नहिं चाहता है. इसकारण यह वात सिद्ध हुई कि न तो जीव कर्मका कर्ता है और न कर्म जीवका कर्ता है। । ___ आगे कर्म और जीवोंका अन्य कोई कर्ता है और इनको अन्य जीवद्रव्य फल देता है. ऐसा जो दूपण है उसकेलिये शिष्य प्रश्न करता है ।
काम्म कम्म कुव्वदि जदि सो अप्पा करेदि अप्पाणं । रविध तस्स फलं भुजदि अप्पा कम्मं च देदि फलं ॥ ६३ ॥
संस्कृतछाया. कर्म कर्म करोति यदि स आत्मा करोत्यात्मानं ।
कथं तस्य फलं भुङ्क्ते आत्मा कर्म च ददाति फलं ॥ ६३ ॥ दार्थ-[यदि] जो [कर्म] ज्ञानावरणादि आठ प्रकारका कर्मसमूह जो है सो
म] अपने परिणामको [करोति ] करता है और जो [सः] वह संसारी [आत्मा] । जीवद्रव्य [आत्मानं] अपने स्वरूपको [करोति] करता है [ तदा] तब [ तस्य ] उस कर्मका [फलं] उदय अवस्थाको प्राप्त हुवा जो फल तिसको [आत्मा] जीवद्रव्य [कथं] किस प्रकार [भुते] भोगता है ? [च] और [कर्म] ज्ञानावरणादि आठ प्रकारका कर्म [फलं] अपने विपाकको [कथं ] कैसे [ददाति ] देता है ।
भावार्थ—जो कर्म अपने कर्म स्वरूपका कर्ता है और आत्मा अपने स्वरूपका कर्ता है तो आत्मा जडस्वरूप कर्मको कैसें भोगवैगा ? और कर्म चैतन्यस्वरूप आत्माको फल कैसे देगा? निश्चयनयकी अपेक्षा किसीप्रकार न तो कोई कर्म भोगता है और न कोई भुक्ताव है, ऐसा शिप्यने प्रश्न किया तिसका गुरु समाधान करते हैं कि-आप ही जब