SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीपञ्चाम्तिकायसमयसारः। आगे द्रव्यकर्मका निमित्तपाकर औदयिकादि भावोंका कर्ता आत्मा है यह कथन किया जाता है। कम्मेण विणा उदयं जीवस्त ण विज्झदे उपसमं वा । खड्यं खओवससियं तमा भावं तु कालकदं ॥ ५८॥ संस्कृतलाया. कर्मणा विनोदयो जीवस्य न विद्यत उपशमो वा ।। क्षायिकः क्षायोपशमिकस्तस्माज्ञावस्तु कर्मकृतः ॥ ५८ ॥ पदार्थ- [कर्मणा विना] द्रव्यकर्मके विना [जीवस्य ] आत्माके [उदयः] रागादि विभावोंका उदय [वा] अथवा [उपशमः] द्रव्यकर्मके विना उपशम भाव भी [न विद्यते] नहीं है जो द्रव्यकर्म ही नहिं होय तो उपशमता किसकी होय ? और औपशमिकभाव कहांसे होय ? [वा क्षायिकः] अथवा क्षायिकभाव भी द्रव्यकर्मके विना नहिं होय. जो द्रव्यकर्म ही नहिं होय तो क्षय किसका होय ? तथा क्षायकभाव भी कहांसे होय ? [वा] अथवा [क्षायोपशमिकः] द्रव्यकर्मके विना क्षायोपशमिक भाव भी नहिं होते. क्योंकि जो द्रव्यकर्म ही नहीं है तो क्षायोपशमदशा किसकी होय ? और क्षायोपशमिक भाव कहांसे होय ? [ तस्मात् ] तिस कारणसे [ भावः तु] ये चार प्रकारके जीवके भाव हैं सो [कर्मकृतः] कर्मने ही किये हैं । - भावार्थ-औदयिक, औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक ये चारों ही भाव कर्मजनित जानने. कर्मके निमित्तविना होते नहीं है । इस कारण आत्माके स्वाभाविक भाव जानने । यद्यपि इन चारों ही भावोंका भावकर्मकी अपेक्षा आत्मा कर्ता है. तथापि व्यवहार नयसे · द्रव्यकर्म इंनका कर्ता है. क्योंकि उदय उपशम क्षयोपशम और क्षय ये चारों ही अवस्थायें द्रव्यकर्मकी हैं. द्रव्यकर्म अपनी शक्तिसे इन चारों अवस्थावोंको परिणमता है. इन चारों अवस्थावोंका निमित्त पाकर आत्मा परिणमता है. इस कारण व्यवहार नयसे इन चारों. भावोंका कर्ता द्रव्यकर्म जानना निश्चय नयसे आत्मा कर्ता जानना । ___ आगें सर्वथा प्रकारसे जो जीवभावोंका कर्ता द्रव्यकर्म कहा जाय तो दूपण है ऐसा कथन किया जाता है। भावो जदि कम्मकदो अत्ता कम्मरस होदि किध कत्ता। ण कुणदि अत्ता किंचि वि मुत्ता अपणं सगं सावं ॥ ५९ ॥ संस्कृतछाया. भावो यदि कर्मकृतः आत्मा कर्मणो भवति कथं कर्ता। न करोत्यात्मा किंचिदपि मुक्त्वान्यत् स्वकं भावं ॥ ५९ ॥ पदार्थ--[यदि] जो सर्वथा प्रकार [भावः] भावकर्म [कर्मकृतः] द्रव्यकर्मके
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy